14वीं पंचवर्षीय योजना: भारत-चीन सहयोग के लिए नए मौके

14वीं पंचवर्षीय योजना सिर्फ़ 1.4 बिलियन चीनी लोगों के बेहतर भविष्य से ही जुड़ा नहीं है, बल्कि दुनिया के विकास के लिए और "चीनी अवसर" लाएंगे, विशेष रूप से चीन-भारत संबंधों के विकास के लिए नया आवेग और मौके प्रदान करेगा।
by वांग शिदा
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12 नवम्बर, 2019: तीसरे क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (आरसीईपी) का आयोजन थाइलैंड के शहर बैंकॉक में किया गया। चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग (बाएं से सातवें) और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं से छठे) ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। (चाइना न्यूज़ सर्विस)

अक्टूबर, 2020 में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन ने सीपीसी केंद्रीय समिति की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के लिए 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और साल 2035 के माध्यम से दीर्घकालीन लक्ष्यों के सूत्रीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की केंद्रीय समिति के महासचिव शी चिनफिंग ने 14वीं पंचवर्षीय योजना (एफवायपी) के सूत्रीकरण का व्यक्तिगत रूप से नेतृत्व किया। दस्तावेज बतौर आधुनिक समाजवादी देश निर्माण की चीन की नई यात्रा की शुरुआत का हर तरफ से मार्गदर्शन करता है तथा द्वितीय शताब्दी के लक्ष्य की ओर इसकी प्रगति, और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास को अगले पांच साल और उसके बाद भी दिशा दिखाता है। यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि 14वीं पंचवर्षीय योजना के प्रस्ताव में उच्च स्तर पर मुक्त अर्थव्यवस्था का निर्माण और साझा जीत की नई परिस्थिति को खोलना, बड़े पैमाने पर खुलने को लागू करने पर जोर देना, विस्तृत क्षेत्र में और गहरे स्तर पर, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देने व परस्पर विनिमय लाभ और जीत के परिणाम पाने के लिए चीन के बड़े बाजार फायदों पर निर्भरता शामिल है। इसका संबंध सिर्फ चीन के 1.4 बिलियन लोगों के उज्जवल भविष्य के साथ ही नहीं है, बल्कि विश्व के विकास में और अधिक "चीनी मौके" लाएगा, खासतौर पर चीन-भारत संबंधों के विकास में और अवसर व आवेग भरना है।

अधिक संतुलित आर्थिक और व्यापारिक संबंध को प्रोत्साहन देना

21वीं शताब्दी में प्रवेश के साथ ही, चीन और भारत के बीच आर्थिक व व्यापारिक लेन-देन का बढ़ना जारी रहा है, और द्विपक्षीय व्यापार रकम 100 बिलियन यूएस डॉलर पहुंच गया। फिर भी दीर्घकालीन व्यापारिक असंतुलन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सन् 2019, चीन और भारत के बीच व्यापार रकम 92.81 बिलियन यूएस डॉलर पहुंच गया, जिसमें चीन से भारत में निर्यात 74.83 बिलियन यूएस डॉलर हो गया, जबकि भारत से चीन को आयात सिर्फ 17.98 यूएस बिलियन डॉलर का ही है। चीन का भारत के साथ व्यापारिक अधिशेष 56.85 बिलियन यूएस डॉलर पहुंच गया है। यह मुख्य रूप से इसलिए ऐसा है क्योंकि दोनों देश आर्थिक विकास के अलग-अलग चरणों पर हैं और उनके औद्योगिक ढांचे संपूरक हैं। भारत मुख्य रूप से कृषि उत्पादों और प्राथमिक उत्पादों के कच्चे माल जैसे कि मोती, रत्न और धातु, धातु अयस्क,सूती कपड़ा, धागा इत्यादि निर्यात करता है। चीन औद्योगिक वस्तुएं जैसे कि मोटर और उपकरण, कम्प्यूटर्स, सर्वर्स, प्रिंटर्स, मशीन और भाग, जैविक रसायन इत्यादि का निर्यात करता है। भारत द्वारा चीन को निर्यात किये गए प्राथमिक उत्पादों की कीमत चीन द्वारा भारत में निर्यात किये गए औद्योगिक उत्पादों से कहीं ज्याद कम है। फिर भी भारत का मानना है कि उसके अधिकतर कृषि उत्पाद और प्रतिस्पर्धी उद्योग (जैसे कि फार्मास्युटिकल्स, आईटी इत्यादि) चीन के बाजार में दाखिल होने में रुकावटों का सामना कर रहे हैं। भारतीय प्राधिकारी वर्ग ने यह निवेदन करते हुए कि भारत के प्रौद्योगिक क्षेत्र, दवाई, फसल और अन्य उत्पाद, और नियामक प्रक्रियायों में समायोजन के लिए चीन अपने बाजार का विस्तार करे, उच्च नेताओं की बैठक, मंत्रियों की यात्रा, रणनीतिक आर्थिक संवाद और अन्य विनिमयों में यह बात कई बार दोहराई है।

14वीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य खुलने के स्तर को सुधार करना, व्यापार और निवेश उदारीकरण व सहूलियत को प्रोत्साहन, और व्यापक रूप से विदेशी व्यापार के प्रतियोगिता को मजबूत करना है। विदेशी निवेश के लिए देश "पूर्व-अस्थापना राष्ट्रीय प्रबंध और नकारात्मक सूची" प्रबंधन प्रणाली में सुधार करेगा, जिसमें सेवा क्षेत्र में खुलने का विस्तार और विदेशी कंपनियों के कानूनी हक और हितों की रक्षा भी शामिल है। यह निश्चित रूप से और अधिक भारतीय उद्योगों के लिए चीन में निवेश तथा भारत द्वारा चीन में होने वाले निर्यात को बढ़ाने के लिए बेहतर सुविधा प्रदान करेगा, जिसमें सेवा क्षेत्र जैसे कि आईटी उद्योग शामिल हैं। 

2 मार्च, 2020: चीन के चांगशी प्रांत की ज़िन्यू सिटी की कंपनी में सोलर पैनल बनाते हुए कर्मचारी। यहाँ से 260 मिलियन युआन (40 मिलियन अमेरिकी डॉलर) कीमत के सोलर पैनलरेल-समुद्र इंटरमोडल परिवहन से भारत भेजे जाने हैं। (चाइना न्यूज़ सर्विस)

इसके साथ, 14वीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य विदेशी निवेश को प्रोत्साहन व संरक्षण के लिए कानूनों, नीतियों और सेवा तंत्र में और सुधार, विदेशों में चीन उद्योगों के कानूनी हक और हितों को दृढ़ता से सुरक्षित रखना तथा उच्च-गुणवत्ता आयात और निर्यात को समझना है। 2020 से, भारतीय प्राधिकारियों ने एकतरफ़ा तौर पर ठेकों को रद्द कर, व्यापारिक अड़चने लागू कर, चीनी उपक्रमों के निवेश और चीनी सरकार द्वारा शुरू किये गए परियोजनाओं में बोली पर रोक लगाकर, टिकटॉक जैसे ऍप्स को प्रतिबंधित कर चीनी उद्योगों के प्रति भेदभाव पूर्ण रवैया अपना लिया है। यह निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश नियमों के खिलाफ है और गंभीरता से अन्तरराष्ट्रीय पूंजी, साथ ही भारत में चीनी पूंजी के भरोसे को प्रभावित किया है। भविष्य में, भारत सरकार को चीन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि को कड़ाई से लागू करने की जरूरत है, भारत में निवेश कर रहे है चीनी उपक्रमों के कानूनी हक और हितों की रक्षा के लिए व्यवहारिक कदम उठाने, और विदेशी उपक्रमों के लिए सुरक्षित, न्यायसंगत और पूर्वसूचनीय व्यापार माहौल प्रदान करने, जिसमें चीन उद्योग भी शामिल हैं। क्या सिर्फ इस तरह हम भारत में चीनी उपक्रमों के निवेश के भरोसे को बढ़ा सकते हैं और आगे चीन-भारत के आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के संतुलित और संवहनीय विकास के प्रोत्साहित कर सकते हैं।

भारत-चीन सहयोग के लिए नए अवसर

बेल्ट एंड रोड पहल में भाग लेने को लेकर भारत हाल के सालों से उदासीन रहा है। बेल्ट एंड रोड के अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंच से दो बार अनुपस्थित ही नहीं रहा है बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय सम्मेलन में भाग लेने के दौरान इस के बारे में उल्लेख तक नहीं किया। भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के विरोध को सार्वजनिक किया और बताया कि "सीपीईसी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जाता जो भारत के प्रभुत्व को चुनौती देता है।” “व्यापक विचार-विमर्श”, “साझा सहयोग” और “सहभागी लाभ”के सिद्धांत के आधार पर 14वीं पंचवर्षीय योजना बेल्ट एंड रोड की स्थिति का मसौदा बाना रहा है। किसी भी देश को भाग लेने के लिए दबाव नहीं किया जाएगा, न ही अपने रुपरेखा में यह चीन और अन्य देशों के सहयोग को अनिवार्य रूप से नहीं थोपता है। यह भारत के लिए पर्याप्त सहूलियत और लचीलापन प्रदान करता है।

14वीं पंचवर्षीय योजना मुलभूत सुविधा, एक दूसरे का मेल-जोल, त्रिपक्षीय बाजार सहयोग का विस्तार को उल्लेखित करती है, और एक ऐसी प्रणाली स्थापित करने का उद्देश्य है जिसमें उद्योग मुख्य भूमिका निभाये और बाजार अंक जो अंतरराष्ट्रीय कार्यप्रणाली और ऋण संवहनीयता के सिद्धांत को मानते हैं। यह चीन और भारत को उनके अपने उपक्रमों को क्षेत्र में जोड़ने के लिए बड़ी संभावना प्रदान करती है।  उदाहरण के लिए, भारत के लिए "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" को अपनाया है, जिसमें मेकांग-गंगा कोऑपरेशन (एमजीसी) और बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकनोमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) के माध्यम से दक्षिण एशियाई देशों और भारत के बीच संयोजकता और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है। दक्षिण एशियाई उप-क्षेत्र में सीमा आरपार आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए बांग्लादेश, भूटान,भारत, नेपाल (बीबीआईएन) उपक्रम शुरू किया है। यह कदम बेल्ट एंड रोड पहल की परिपेक्ष्य में दिखते हैं। बिना किसी एक खास उपक्रम को परियोजनाएं सौंपने की जरूरत के चीन और भारत तथा क्षेत्र में अन्य देश हर तरह से विशेष परियोजनाओं में सहयोग कर सकते है

वैश्विक शासकीय प्रणाली के सुधार में संयुक्त सहभाग

वर्तमान में, वैश्विक आर्थिक और व्यापारिक परिस्थिति निश्चित रूप से विकासशील देशों की ओर नहीं है। दो बड़े विकासशील देश, चीन और भारत अधिकतर वैश्विक आर्थिक मुद्दों में एक जैसी या एक समान स्थिति साझा करते हैं। विशेष रूप से, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) जैसे अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में विकासशील देशों बेहतर स्थान दिए जाने तथा एक मुक्त और खुले वैश्विक बहुपक्षीय व्यापारिक प्रणाली को सुरक्षित और मजबूत करने की वकालत करते हैं। इसलिए, वैश्विक आर्थिक शासन के क्षेत्र में चीन और भारत में विकासशील देशों के हितों और मांगों की रक्षा करने की शक्ति है। 14वीं पंचवर्षीय योजना समान विचार-विमर्श, परस्पर लाभ और जीत के परिणाम पर टिके रहने की बात करता है। यह जी20 और अन्य देशों को अंतरार्ष्ट्रीय आर्थिक सहयोग में भाग लेने को कहता है। इसका उद्देश्य बहुपक्षीय व्यापारिक प्रणाली की रक्षा, विश्व व्यापार संगठन में सक्रिय भागीदारी, और न्यायपूर्ण व अधिक वैश्विक आर्थिक शासन प्रणाली का निर्माण है। 

यह बयान स्पष्ट रूप से बताता है कि चीन और भारत समेत विकासशील देशों को विश्व आर्थिक क्रम और वैश्विक बहुपक्षीय व्यापारिक प्रणाली को सुरक्षित करना चाहिए जो एक समान नियमों पर आधारित है, और चीन और भारत को वैश्विक आर्थिक शासन प्रणाली के सुधार के दौरान सहयोग को बेहतर करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, चीन और भारत संयुक्त रूप से एक "मुक्त और खुले व्यापार व आर्थिक प्रणाली" को बनाये रखने तथा संवहनीय आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए आवाज और कदम उठा सकते हैं। वे बिना यूएन सुरक्षा परिषद की अनुमति के लगाए गए एकपक्षीय प्रतिबंधों का विरोध तथा दो देशों की बीच के मुक्त व्यापार को नुकसान पहुंचाने के लिए सार्वजानिक रूप से एकतरफ़ा प्रतिबंधों की निंदा कर सकते हैं। नवंबर 15, 2020 को, रीजनल कपरहंसीव इकनोमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) आधिकारिक पर हस्ताक्षर किया गया। यह एक मुक्त व्यापार क्षेत्र जो बृहत् जनसंख्या, सबसे बड़े आर्थिक और व्यापारिक परिमाण तथा दुनिया में सर्वाधिक विकास संभावना के निर्माण की शुरुआत करता है। पहली बार, यूएस-मेक्सिको-कनाडा अनुबंध (यूएसएमसीए) और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के मुकाबले में पूर्व एशिया एक संगठित बड़े बाजार के रूप में एक त्रिकोणीय दल निर्माण करेगा और इस प्रकार से वैश्विक स्वरुप बदलेगा।

हालांकि, बाजार को खोलने से व्यापारिक घाटा बढ़ेगा, घरेलू उद्योगों पर असर और बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी। इस डर से, भारत ने क्षेत्रीय औद्योगिक श्रृंखला और मूल्य श्रृंखला में समाहित करने का कीमती मौका गावं दिया। 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत बहु-द्विपक्षीय क्षेत्रीय निवेश और व्यापारिक सहयोग तंत्र में सक्रियता से भाग लेने, मुक्त व्यापार क्षेत्र की रणनीति को लागू करने को बढ़ावा देने, और वैश्विक उच्च मापदंड मुक्त क्षेत्र समाज के निर्माण का उद्देश्य है। कुछ आरसीईपी सदस्यों के साथ सकारात्मक बयान निश्चित रूप से निरंतर हैं, जो कहते हैं कि,  आरसीईपी अब भी भारत के लिए खुला है और वह भविष्य में जब चाहे जुड़ सकता है।

लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ़ साउथ एशिया, साउथईस्ट एशिया एंड ओशिनिया ऑफ़ चाइना इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशन्स में उप निदेशक हैं।