जी20 में भारत का संतुलित रवैया कब तक टिकेगा ?

यह स्पष्ट है कि भारत ने एक बार फिर से जी20 शिखर सम्मेलन में संतुलित भूमिका अपनायी है। सवाल यह है कि बढ़ते प्रखर भूराजनैतिक प्रतिस्पर्धाओं की पृष्ठभूमि में यह कब तक इस संतुलित रवैये को जारी रख सकता है।
by लिन मिनवांग
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नवंबर 30, 2018: राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में मिलते हुए। ली जुरेन/शिन्हुआ

सन 2008 की आर्थिक मंदी का सामना करने के लिए जी20 को वैश्विक आर्थिक खतरे से लड़ने के लिए दुनियाभर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। एक दशक बाद, आर्थिक संकट काल से हुए जोखिमों से उभरने के साथ, जी20 की रूपरेखा के तहत प्रमुख देशों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धाएं उभरनी और बढ़नी शुरू हो गयी हैं। इस परिपेक्ष्य में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अर्जेंटीना में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में प्रमुख देशों के नेताओं के बीच की बातचीत पर अधिक ध्यान दिया है।

क्या राष्ट्रपति शी चिनफिंग और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मुलाकात चीन-यूएस के व्यापार युद्ध पर विराम लगा सकती है? क्या राष्ट्रपति ट्रम्प सऊदी नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे? जो जी20 शिखर सम्मेलन के पक्ष में हैं उन्हें निःसंदेह, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों की अपेक्षा अधिक है। भारत के लिए जी20 एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मंच है। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने जब पहली बार जी20 शिखर सम्मेलन में हिसा लिया था तब उन्होंने कहाआखिरकार हम आज शीर्ष मंच पर बैठे हैं

भारत ने जी20 में अपनी उपस्थिति को अपने अंतर्राष्ट्रीय दर्जे और राष्ट्रीय शक्ति के बढ़ने के प्रतीक के रूप में माना। इस साल के जी20 के शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कई अन्य देशों के नेताओं से मिले, जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग, यूएस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी मुलाकात ने सबका ध्यान खींचा। राष्ट्रपति शी और प्रधान मंत्री मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि वुहान में हुई उनकी अनौपचारिक बैठक चीन और भारत के रिश्तों के लिए मील का पत्थर साबित हुई है, तथा दोनों को वुहान शिखर सम्मेलन के जोश को जारी रखना चाहिए और आगे दोस्ती और आपसी भरोसे को मजबूत करना चाहिए।

ब्रिक्स नेताओं की अनौपचारिक बैठक के दौरान, राष्ट्रपति शी और प्रधान मंत्री मोदी ने विश्व राजनीति, अर्थव्यवस्था व्यापार, एकपक्षीयता के दौर और संरक्षणवाद पर चिंता व्यक्त की। साथ ही ब्रिक्स देशों का आह्वान एकजुटता को मजबूत करने और बहुपक्षीयता का समर्थन करने में सहयोग, नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली और संरक्षणवाद के विरोध का बचाव करने के लिए किया। उन्होंने यह भी ध्यान दिया कि सभी दलों को जी20 शिखर सम्मेलन में एक आवाज में 2030 के सतत विकास और पेरिस अनुबंध के एजेंडे को लागू करने जैसे मुद्दों पर जो जलवायु परिवर्तन से निपटना के लिए है, एक आवाज में बोलना जारी रखना चाहिए।

ब्रिक्स और द्विपक्षीय बैठकों के अलावा, चीन और भारत ने रूस के साथ त्रिपक्षीय बैठक तंत्र को लेकर सफलता प्राप्त की। अर्जेंटीना में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी, रूसी और भारतीय नेताओं ने अपनी पहली त्रिपक्षीय अनौपचारिक बैठक की। सन 1990 के एकदम शुरुआती दौर में तत्कालीन रूसी प्रधान मंत्री एवगें प्रिमकोव ने रूस-चीन-भारतरणनीतिक त्रिभुजके विचार का मसौदा तैयार किया।

सन 2002 में, तीन देशों के विदेश मंत्रियों ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा के 57वें सत्र के बाहर अपनी पहली बैठक की, जो धीरे-धीरे वार्षिक त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की बैठक के तंत्र के रूप में विकसित हुआ है। हालांकि, इन तीनों देशों के प्रमुखों की नियमित बैठक के लिए कोई तंत्र नहीं था। सन 2017 में, भारत के शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने के बाद से, यूरेशियन महाद्वीप के तीन प्रमुख देश, चीन, रूस और भारत ने निश्चित रूप से अपने रणनीतिक सहयोग को मजबूत किया है।

इस संदर्भ में, तीनों देशों के नेताओं ने अर्जेंटीना में हुई जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक की। वे त्रिपक्षीय समन्वय, अनुकूलता और सहयोग को बेहतर करने तथा चीन-रूस-भारत सहयोग तंत्र को आगे मजबूत करने को लेकर सहमत हुए। संतुलित रवैये के तौर पर, भारत, जापान और यूएस के साथ, पहला त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित किया जो बहुपक्षीय कार्यक्रमों से हटकर हुआ। इसे उनके विदेश मंत्रियों के बैठक तंत्र का सुधारित स्वरूप माना जाता है।

यूएस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और जापानी प्रधान मंत्री शिंजे आबे के साथ अपनी बैठक के दौरान, मोदी ने कहा कि जापान और यूएस दोनों भारत के रणनीतिक भागीदार हैं और दोनों देशों के नेता उनके मित्र हैं।जब आप हमारे तीनों देशों के पहले अक्षर--जापान, अमेरिका और भारत देखते हैं तो यहजयबनता है जिसका अर्थ हिंदी में सफलता है”, उन्होंने कहा। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीटर किया किजयबैठक जनतांत्रिक मूल्यों को समर्पित है और तीनों देशों के नेताओं के इंडो-पसिफ़िक, समुद्री मामलों और संयोजकता पर विचारों का आदान-प्रदान किया। हालांकि, सभी तीनों देश बहुपक्षीय अवसरों पर त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित करने पर सहमति जताई है, लेकिन उन्होंने जय शिखर सम्मेलन को नियमित तंत्र बनाने को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं लिया।

यह स्पष्ट है कि भारत ने एक बार फिर जी20 में संतुलित रवैया अपनाया है। कदाचित, यूरेशियन देशों और समुद्री ताकतों के बीच सहयोग को मजबूत करने की भारत अपने इस लचीले नीति पर गर्व कर सकता है। सवाल यह है कि बढ़ते प्रखर भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धाओं की पृष्ठभूमि में यह कब तक इस संतुलित रवैये को जारी रख सकता है।

 

लेखक फूतान यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट अफ इंटरनेशनल स्टडीज के रीसर्च फेलो हैं और पंगु इंस्टीट्यूशन की अकादमी समिति के सदस्य हैं।