भारत और चीन: नए और विस्तृत परस्पर निर्भरता के आयाम

कल्पनाशीलता और नवप्रवर्तन में विशाल और विविध सहयोग सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के विकास को बढ़ाने की क्षमता है।
by महेंद्र पी लामा
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मई 22, 2015: ‘देक्सीअंग प्रियॉरिटी’ कंटेनर शिप निंगबो-चोशान पोर्ट के चिनथांग पोर्ट जिले के दपुकोउ कंटेनर टर्मिनल के बर्थ 1 पर पहली बार पहुंचा। यह पहली भारतीय शिपिंग लाइन है जो दपुकोउ कंटेनर्स द्वारा खोला गया। (वीसीजी)

चीन अंतर्राष्ट्रीय आयात एक्सपो ने विविध मौकों को आसान बनाया और भारत-चीन व्यापार आर्थिक सहयोग के लिए बड़े मंच की सुविधा दी। बीते कुछ सालों की तरह, भारत और चीन अब सक्रियता और मजबूती से तीन स्तरों पर एक दूसरे के साथ रहते हैं: स्थानीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय।

 

स्थानीय एकीकरण

दोनों देश स्थानीय स्तरों पर आर्थिक छाप छोड़ने के लिए सावधानी से काम कर रहे हैं। स्थानीय क्षेत्र में पैठ बनाने के लिए सरहद व्यापार की फिर से शुरुआत करने का ज्ञापन नीतिगत हथियार है।

नथुरा व्यापार मार्ग जो भारत में सिक्किम से जुड़ता है और चीन में टीएआर से जुड़ा है, 2006 में 44 साल बाद दोबारा शुरू किया गया। 2005 के नथुरा व्यापार अनुसंधान दल की रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि कुछ स्तर के व्यापार सहयोग उपायों की उपलब्धता के साथ, नथुरा मार्ग से भारत-चीन सीमा व्यापार 2015 तक 2.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर पंहुच जाएगा।

हालांकि, व्यापार किये जाने वाले सामानों की कमी, खराब सड़क और अपर्याप्त सुविधाएं जैसे कारणों से व्यापार की मात्रा लगभग के बराबर रहा है। इसके बावजूद, पर्यटक अब व्यापार वास्तव में कैसे होता है यह जानने के लिए भारत में शेरथांग और चीन में रेंछिंगकांग की यात्रा करते हैं।

पिछले कुछ सालों से, नथुरा पास अपने आप में ही एक बड़ा पर्यटन स्थल बन गया है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 2014 में महत्वपूर्ण कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा योजना के लिए नथुरा का मार्ग दोबारा शुरू कर के संयुक्त रूप से नथुरा व्यापार मार्ग में नए आयाम की शुरुआत की।

चूंकि यह 2015 में शुरू किया गया, भारी संख्या में तीर्थयात्रियों ने 15,157 फ़ीट की ऊंचाई पर शेरथांग-कांगमा-लाज़ी-जोंगबा-तारचेन-छ्यूगु मार्ग के जरिये मानसरोवर की परिक्रमा की है। लगभग 1650 किलोमीटर मार्ग ने दूरी, आने-जाने का वक्त और दूसरे वैकल्पिक रास्तों जैसे की भौतिक कठिनाईयों वाले नेपाल-चीन सीमा कस्बा खासा (ततोपनी) या कठिन चढ़ाई वाले उत्तराखंड के तकलाकोट को कम कर दिया है।

यह व्यापार मार्ग शानदार पारिस्थितिकी-पर्यटन मार्गों में से एक है और यह जैव-विविधताओं से भरे मनोरंजक जगह की गहराई का रास्ता देता है तथा ग्लेशियर और सीमा पर बसे समुदायों के सांस्कृतिक पारिस्थितिकी की झलक दिखता है। तिब्बत अब सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक चीजों का बाजार नहीं रहा है। यह चीन का सर्वाधिक आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है। तिब्बत और आसपास के क्षेत्रों में सछ्वान, युनान, छिंगहाई और छोंगछिंग उभरते बाजार हैं जिनमें सीमेंट से लेकर नई कारों और और कैटरपिलर फंगस से लेकर तुलिप्स शामिल हैं।

 

राष्ट्रीय परिपेक्ष्य

राष्ट्रीय स्तर  पर, भारत और चीन के आर्थिक हित एक-दूसरे के पक्ष में हैं। भारत-चीन व्यापार धीरे-धीरे 1990 में 270 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2017 में 84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। हालांकि, 2016-2017 में भारत को चीन के साथ व्यापार में 51.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल नुकसान हुआ है। अधिक गंभीरता से कहें तो, भारत की पहचान उत्पादन का गढ़ के रूप में होने के बावजूद, चीन को किए जाने वाले निर्यात में प्रमुख रूप से प्राथमिक माल: कच्चा या आधा कच्चा माल जैसे कि सूती कपड़ा, तांबा, लौह अयस्क, जैविक रसायन और अन्य खनिज पदार्थ शामिल हैं। और इसके आयात में अधिकतर तैयार किये हुए उत्पादक जैसे कि टेलिकॉम उपकरण, इलेक्ट्रिकल मशीनें, कंप्यूटर मोबाइल हार्डवेयर और खाद हैं। प्रधानमंत्री मोदी नेमेक इन इंडियापहल के जरिये इस असंतुलन को ठीक करने का लक्ष्य रखा है। देश अपने कच्चे माल का इस्तेमाल मूल घरेलु उत्पादन में कर सकता है और वैश्विक बाजार के व्यवहार में अधिक मूल्य वर्धित फायदे देखेगा।

क्यामेक इन इंडियाअभियान वैश्विक बन पायेगा ? क्या चीन कुछ औद्योगिक उत्पादन भारत में स्थानांतरित कर सकता है ? नए सीमावर्ती परिवर्तनात्मक सहयोग के शुरू होने की संभावना है।

 

फरवरी 7, 2018: ग्रेटर नोएडा में हुए इंडियन ऑटो एक्सपो 2018 में इलेक्ट्रिक कार चर्चा में आ गयी, जहां प्रदूषण करने वाली गाड़ियों को हटाने के लिए एक महत्वकांक्षी योजना ने उत्पादकों को उनके हरित वाहनों की ओर लाखों चालकों के ध्यान आकर्षित किया है। (वीसीजी)Caption

क्षेत्रीय दृष्टिकोण

बहुत लंबे समय से, चीन ने दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी और मध्य एशिया पर ही ध्यान दिया है। हालांकि, चीन को अमेरिका, ईयू, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ सार्क के पर्यवेक्षक का दर्जा मिला है। दक्षिण एशिया के साथ चीन के व्यापार ने अभूतपूर्व विकास को देखा है जिसमें 1990 के मात्र 1.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2003 में 12.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2015 में 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक हो गये हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए चीन सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। बेहद विशाल 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का शुक्र है कि, आठ सदस्यीय सार्क के छह सदस्य जो चीन के नेतृत्व वाले एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) और बेल्ट एंड रोड पहल  दक्षिण एशिया के लिए बड़ी मात्रा में सुविधा देने वाली निधियां ला सकती है।

यह वो क्षेत्र है जिसमें चीन और भारत को अपने अकेले चलने की पुरानी नीति को खत्म करना पड़ेगा। यदि दोनों देश एक साथ चलने का फैसला करते हैं, तो दक्षिण एशिया को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा और यह एक महाशक्तिमान क्षेत्र बन जायेगा। तब सार्क में चीन की सदस्यता का सवाल सिर्फ आधिकारिक रूप से उपस्थिति या वास्तविक प्रवेश के बीच में घूमता रहेगा। क्या चीन इस क्षेत्रीयखंडमें बाहर से या अंदर से जाना चाहता है या विस्तारित रूप से शैक्षणिक बन जायेगा। तब बहुत विशाल एक-दूसरे पर निर्भर योजनाएं जैसे कि क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक भागीदारी भारत और चीन दोनों के लिए एक कठिन केंद्रबिंदु बन जायेगा। कल्पनाशक्ति और नवाचार सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों में बहुत बड़े और विविधता वाले सहयोग भर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, नेपाल में भारत और चीन की योजनाओं के पारंपरिक राष्ट्रीय सुरक्षा आधारित बर्ताव के बजाय, इस रिश्ते ने त्रिपक्षीय योजनाओं को पर्याप्त मौका दिया है।

भारत और चीन दोनों ने ऊर्जा ग्रिड और ट्रांसमिशन लाइन का बेहद विशाल जाल विकसित किया है जो उनके घरेलू बाजारों की मांग केंद्रों तक ही नहीं पहुंचता है लेकिन संभवतः पड़ोसी देशों को भी जोड़ देता है। सुपर ग्रिड संकल्पना और स्मार्ट ग्रिड प्रावधानों ने ग्रिड अंतरसंपर्क और बाजार तक पहुंच को फायदेमंद और आसान बना  दिया। 2020 तक ट्रांस-क्षेत्रीय, विशाल क्षमता, लंबी दूरी और कम नुकसान संचार बनाने के लिए बड़ी मात्रा में थोक ऊर्जा हाइब्रिड ग्रिडस बनाने की चीन की योजना वास्तविकता हो गयी। भारत के पहले राष्ट्रीय ग्रिड से राष्ट्रीय ग्रिड अंतरसंपर्क बांग्लादेश के साथ बेहरामपुर-भेरामरा ग्रिड को खोलना सहयोग का एक और नया मार्ग खोल दिया गया है। नेपाल के साथ, 400केवी डीसी मुज़्ज़फरपुर-धलकेबर संपर्क को शुरू कर दिया गया है।

नकारात्मक हिस्सेदारों को धीरे-धीरे किनारे किया जा रहा है। सक्रिय आर्थिक कूटनीति को निरंतर होना चाहिये जैसे फौज में शस्त्रागार को शांति के समय में संभाल रखा जाता है। आर्थिक परस्पर निर्भरता सबसे लंबी और फायदेमंद रणनीति होने वाली है।

 

लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में स्कूल ऑफ इंटरनॅशनल स्टडीज में वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। और हाल ही में, कुछ समय पहले तक, उन्होंने सछ्वान यूनिवर्सिटी, छनतू, चीन के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियाई स्टडीज में विशेषज्ञ थे। वे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दल और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ सिक्किम में संस्थापक उप कुलाधिपति थे। वर्तमान में वे 2016 में नेपाल और भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारत-नेपाल रिश्तों को लेकर बनाये गए प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह में नामांकित हैं। उनका सबसे नया प्रकाशन जो बतौर सह-लेखक इंडिया चाइना: रीथिंकिंग बॉर्डर्स एंड सिक्योरिटी जो मिशिगन यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित, यूएस, 2016।