भारत और चीन: प्रगाढ़ आपसी समझ

वुहान बैठक ने भारत और चीन को नए क्षेत्रों में द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार के लिए नए सिरे की कार्यवाई की रूपरेखा बनाने के संदर्भ में गहरा लाभांश दिया है।
by श्रीकान्थ कोंडापल्ली
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अक्टूबर 23, 2019: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री चाओ खज़ी नई दिल्ली में मिले।

बेहतर आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए, भारत और चीन ने कई उपक्रम शुरू किए जिनमें भारतीय विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज और चीनी स्टेट कांसुलर और विदेश मंत्री वांग यी द्वारा दिसंबर 2018 में चीन-भारत के उच्च स्तरीय मानव संस्क्रुति के आदान-प्रदान तंत्र की पहली बैठक पर एक अनुबंध किया गया। अनुबंध का उद्देध्य दो देशों के बीच की आपसी चर्चा को बेहतर करना है जिससे आने वाले दिनों में तालमेल सुधरने की उम्मीद है।
निरंतर तकलीफ देने वाली कई समस्याओं ने द्विपक्षीय रिश्तों को कमजोर करना जारी रखा है जैसे कि अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद, तिब्बत, व्यापार घाटा, पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र के साथ रिश्तों को लेकर एक जैसे परिपेक्ष्य, हिंद महासागर और अन्य। हालांकि, चूंकि राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अप्रैल 2018 में हुई बैठक में इन समस्याओं का प्रभाव कम करने के लिए और द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने पर आगे बढ़ते रहने की नीति अपनाने के कई पहल किए गए हैं। दोनों ओर की रणनीतिक बातचीत, सीमाक्षेत्रों में भरोसा बनाने के कदमों के माध्यम से स्थिरता मजबूत करना (सीबीएम), व्यापार घाटा कम करने, एक बहुध्रुवीय दुनिया और युद्ध के पीड़ित अफगानिस्तान में आर्थिक योजनाओं पर काम करने की संभावनाओं का पता लगाने पर जोर देना वुहान बैठक की देन है।

उच्चस्तरीय बातचीत
वुहान बैठक के बाद, विदेशी मामलों, रक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा अस्थापना, सशस्त्र सेना, आर्थिक, व्यापार प्रतिनिधि और अन्य के क्षेत्रों में एक उच्चस्तरीय श्रृंखला बातचीत हुई, जो सभी स्तरों पर अभूतपूर्व बातचीत की लहर मानी जा रही है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के शब्दों में, इन प्रयासों का उद्देश्य निरंतर सकारात्मक ऊर्जा को इकट्ठा करना है।” छिंगताओ में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन की तैयारियों से जुड़ी बैठक में हिस्सा लेने के लिए पहले विदेश मामलों और रक्षा मंत्री पहुंचे। प्रधानमंत्री मोदी जून 2018 में छिंगताओ की यात्रा की और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ जल विज्ञान संबंधी आंकड़ों के आदान-प्रदान और गैर बासमती चावल का चीन में निर्यात पर दो अनुबंध हस्ताक्षर किए। वे 2020 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन यूएस डॉलर से अधिक पहुंचाने पर सहमत हुए हैं। उभरती हुई इंडो-पसिफिक संरचना के समावेश पर मोदी की टिप्पणी को एक हफ्ता पहले शंगरी-ला संवाद सप्ताह में बीजिंग पर अच्छा प्रतिसाद मिला। जनरल वेई फेंगहे, चीनी रक्षा मंत्री, ने अगस्त 21 से अगस्त 24, 2018 नई दिल्ली की यात्रा की और दोनों देशों के दरम्यान सेना कमांड के बीच हॉटलाइन स्थापित करने, सीबीएम लागू करने, पुनर-वाणिज्यिक आतंकवाद निरोधी हाथ से हाथ मिलाकर दोनों सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास (बाद में दिसंबर 3 से दिसंबर 23, 2018 छंग तू में सफलतापूर्वक आयोजित किया गया) और दो अतिरिक्त सीमावर्ती बैठक जगहें (वर्तमान में सीमा पर मौजूद पांच के अतिरिक्त) शुरू करने पर चर्चा हुई।
दूसरी उच्चस्तरीय बैठक चीनी सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री चाओ कची और भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ हुई जो अक्टूबर 23, 2018 की दिल्ली यात्रा के दौरान हुई। दोनों आतंकवाद-विरोधी सहयोग, संगठित अपराध, मादक पदार्थ और मानव तस्करी तथा जानकारियों के लेनदेन से निपटने के लिए संस्थागत तंत्रों में सुधार करने पर सहमत हुए। चीनी स्टेट कांसुलर और विदेश मंत्री वांग यी का दिल्ली दौरा प्रमुख था। दिसंबर 21 से 24, 2018 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ दस स्तंभ अनुबंध पर हस्ताक्षर किया गया जिससे सांस्कृतिक और लोगों की अदला-बदली को उच्चस्तर पर आगे बढ़ाया जा सके।
इन स्तंभों में युवा आदान-प्रदान, पर्यटन को बढ़ावा, संग्राहलय प्रबंधन, फ़िल्म और टीवी संयुक्त निर्माण और साझा, जुड़वा शहरों के जाल का विस्तार करना, भाषा शिक्षा को बढ़ावा देना, पेशेवर भाषांतर और अनुवाद को मजबूत करना व शैक्षणिक विनिमय को बढ़ावा देना, खेल, दवा और योगा शामिल हैं। बतौर सभ्यतावादी राज्य, भारत और चीन सौम्य ताकत का महत्व जानते हैं। हालांकि, यात्रा ने आपसी तालमेल को मजबूत करने को लोकप्रिय स्तर पर नया मोड़ दिया है। द्विपक्षीय रिश्तों के लिए ऐसे कई मामले नए नहीं हैं। इस बीच, पिछले तीस सालों में भारत और चीन में कई आपसी समझौते के करार संपन्न हुए जिसमें 1000 से अधिक युवाओं का आदान-प्रदान, 32 सालना छात्रवृत्ति, दोस्ताना साल, पुस्तक मेला, फ़िल्म वितरण, योग और गांधी केंद्र, नालंदा विश्वविद्यालय, खेल और अन्य क्षेत्र हैं।
बॉलीवुड फिल्में, खासतौर पर आमिर खान की हाल की सफल फिल्मों ने चीन के बाजार में एक अलग जगह बनाई है। ई-वीजा सुविधाओं के शुरुआत के बावजूद भी दोनों देशों के बीच पर्यटन तुलनात्मक रूप से कम रहा है। सन् 2017 में 2.4 मिलियन चीनी नागरिकों ने भारत की यात्रा (मुख्यरूप से बौद्ध धर्मस्थलों) की जबकि उसी साल भारत से 8.2 मिलियन भारतीय चीन पहुंचे। विदेश मंत्रियों के बीच चल रही वर्तमान चर्चाओं में, 40 से भी अधिक सामानों पर जिनपर बीते वक्त में कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई उन्हें द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए नए प्रारूप में शामिल कर लिया गया है।

आपसी अवधारणाओं को प्रभावित करना
अक्सर यात्राओं के साथ-साथ, दूसरा हाल का दौर है क्षेत्रों का आपसी सहमति के साथ संस्थाकरण का विस्तार करना। आपसी अवधारणा मायने रखते हैं। यह मीडिया और थिंक टैंकों से संबंधित है कि वे दोनों को अधिक महत्व से देखने लगें। वैश्वीकरण में आ रही तेजी, खासतौर पर नई प्रौद्योगिकियों से, मानवी संचार अनंत तक पहुंच गए हैं। डिजिटलीकरण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, परिमाण प्रौद्योगिकीय, ई-वाणिज्य और अन्य प्रौद्योगिकीयों ने चीन और भारत जैसे बड़े देशों के लिए नई योजनाएं खोल दी हैं। इस बीच, भारी संख्या में उपभोक्ताओं और हमेशा फैलते बाजारों के साथ, भारत और चीन सूचना और संचार प्रौद्योगिकी युग में अग्रणी हैं।
साथ ही, इन संचारों की नस संवाद प्रणालियां--प्रमुखता से पश्चिमी संभाषण द्वारा बनाई गई हैं जिनकी वजह से अधिकतर देशों को या तो इस तरह के संवाद को अपनाना पड़ा या फिर कई उभरते मामलों पर उन्हें अपने खुद की आवाज बुलंद करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। पहले, कई मौके पर उत्तरी संवाद को सुधारा है, जो एशियाई मूल्यों, बातचीत और सर्वसम्मति के जरिये आए मुद्दों का समाधान, बहुध्रुवीय और अन्य लक्षणों से बनी है। निश्चित रूप से, भारत और चीन ने अपने इस तरह के संवाद बनाने की प्रणाली का खुद के तरीकों का पालन किया है लेकिन उन मुद्दों पर एक-दूसरे से जुड़ना आपसी फायदा साबित हुआ।
चीन दुनियाभर में कन्फ्यूशियस संस्थान चलाता है जबकि भारत के योग की लोकप्रियता के साथ टैगोर व गांधीवादी केंद्र हैं। मीडिया उद्योग में, स्वामित्व, संचालन और आयाम के ढांचे भारत और चीन में अलग हैं। आज, हजारों समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों के साथ, चीन के पास पूंजीपति सोशल नेटवर्किंग साइट्स जो ई-वाणिज्य दौर के जुड़ाव के साथ प्रसिद्ध और अत्यावश्यक हो गई हैं।
भूमंडलीकरण ने भी कई मायने में चीनी मीडिया को प्रभावित कर रही है। दिसंबर 2016 में चाइना ग्लोबल टीवी नेटवर्क (सीजीटीएन) की शुरुआत की गई।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ऐलान किया: चीन और दुनिया के बीच का रिश्ता ऐतिहासिक बदलाव से गुजर रहा है। चीन को विश्व की एक बेहतर समझ की जरूरत है। तब, 2018 के अंत में, चाइना सेंट्रल टेलीविजन, चाइना नेशनल रेडियो, और चाइना रेडियो इंटरनेशनल सभी वॉइस ऑफ चाइना के बैनर के तले एकजुट थे।
भारतीय मीडिया भी भूमंडलीकरण की हवा से अछूता नहीं रहा है। भारत में हाल ही में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल नेटवर्किंग साइट्स सभी ने बड़ा बदलाव अनुभव किया है। अपने संघीय, बहुपक्षीय लोकतंत्र और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र से भावमोल करके, पेशेवर प्रेस कौंसिल और ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन्स द्वारा भारतीय मीडिया स्वयं समर्थित और नियमित है। हालांकि, इन मतभेदों के बावजूद, पारंपरिक और नई मीडिया की भूमिका भूमंडलीकरण के साथ दोनों देशों में तेजी से बदल रही है। भारत और चीन दोनों अनधिकृत पानी में उतर रहे हैं और पूर्वी गोलार्ध में आर्थिक वृद्धि दर पश्चिमी गोलार्ध के ग्रहण से दूर होने की वजह से अपने फायदों को समन्वित करने की योजना बना रहे हैं। मीडिया मंच भारत और चीन में एक गहरे सोच-विचार का नतीजा हैं। पहला भारत-चीन मीडिया मंच सितंबर 16, 2013 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया था जिसमें दोनों ओर से 40 मीडिया संस्थानों और 80 पेशेवरों ने भाग लिया। उस मौके पर बात करते हुए तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि यह कार्यक्रम दोनों देशों की मीडिया के लिए संचार, विनिमय, आपसी तालमेल और सहयोग को बेहतर करने में दूर तक जाएगा जो मजबूत जनभावना का निर्माण किया जाएगा, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को प्रोत्साहन मिलेगा।
दूसरा भारत-चीन मीडिया मंच फरवरी 1, 2015 को बीजिंग में आयोजित हुआ था। चीनी राज्य परिषद के इनफार्मेशन ऑफिस ऑफ चाइना के पूर्व मंत्री च्यांग च्येनक्वो और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सभा का संबोधन किया।
तीसरा मंच दिसंबर 21, 2018 को नई दिल्ली में आयोजित हुआ। भारत की विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि जब तक हम अपने लोगों तक के रिश्तों को मजबूत नहीं करते हैं हमारे आगे के सहयोग में तेजी लाना बहुत मुश्किल होगा। इस बैठक से तीन थीम उभर कर आई हैं: मीडिया समझ को मजबूत करना, नजदीकी विकास को बढ़ावा देना और भविष्य के मीडिया सहयोग के लिए विचार विमर्श से एक रूपरेखा बनाना। संयुक्त फ़िल्म निर्माण, सामग्री को साझा करना और अन्य संभावित गतिविधियों पर चर्चा हुई थी।
आपसी समझ पर ध्यान देने के लिए शुरू किया गया दूसरा उपक्रम थिंक टैंक के स्तर पर पहुंच गया है। चीन और भारत दोनों के पास अब सैकड़ों विचार मंच हैं जो विभिन्न ताकतों को नीति विकल्प देते हैं। उच्च वर्ग की अवधारणाओं को बनाने में उनके किरदार को कम करके नहीं आंका जा सकता। हालांकि, दोनों देशों के विचार मंच एक दूसरे से बातचीत करते आ रहे हैं, इस तरह की नेटवर्किंग मुख्यरूप से एक-एक के साथ है। बीजिंग में मई 2015, में हुई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुए करार बढ़ते हुए, पहला चीन-भारत थिंक टैंक मंच “भारत-चीन करीबी विकास भागीदारी की ओर” के विषय पर नई दिल्ली में 9 से 10 दिसंबर, 2016 आयोजित हुआ था।
करार के अनुसार, ये मंच दोनों तरफ की सरकारों को ढांचागत सलाह और सुझाव देने की नीयत रखते हैं। दूसरा भारत-चीन थिंक टैंक मंच 24 से 25 जून, 2017 बीजिंग में “भारत-चीन रणनीतिक सहयोग और विकास भागीदारी” के विषय पर आयोजित हुआ। चाइनीज़ अकादमी ऑफ सोशल साइंसेज के अध्यक्ष वांग वेइक्वांग ने बहुध्रुवीय विश्व क्रम बनाने पर ज़ोर दिया है।
तीसरा चीन-भारत थिंक टैंक मंच नई दिल्ली में “एशियाई शताब्दी की ओर जोड़ती सभ्यता” विषय पर 20 से 21 दिसंबर, 2018 आयोजित हुआ। उस अवसर पर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि यह कार्यक्रम अपने दोनों देशों के बीच के अंतर्निहित बौद्धिक संबंध के भरोसे को सुदृढ़ करेगा। अपने गहराते रिश्तों के साथ और अपने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय भूमिका विकसित हो रही हैं, दुनिया उम्मीद करती है कि हमारे दो देश एशिया का नेतृत्व करेंगे और एशियाई शताब्दी में प्रवेश करेंगे।

विषय-क्षेत्र-संबंधी प्रशंसा
यदि उच्च स्तरीय यात्राएं और आपसी अवधारणाओं को उच्च वर्गीय सर्वसम्मति के जरिये मजबूत करना प्रभावशाली है, भारत और चीन को एक-दूसरे के साथ कुछ विषयों पर जो उनके करीबी हैं मजबूती से काम करने की ज़रूरत है। हितों की समानता उभर रही है और जिसे कई मामलों पर इन दोनों देशों के संयुक्त बयान और स्थितियों में दिखाई दी जाती है। आज, भारत और चीन वैश्वीकरण के महत्वपूर्ण समर्थक हैं। बाजार में पहुंच, निवेश प्रवाह, सुधार और उदारवाद के दौरान निर्यात और आयात के संबंध में भूमंडलीकरण से फायदा पाने से, भारत और चीन ने जी20, ब्रिक्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसी जगह बना रखी है। उनका उदय बढ़ती दरों के खतरों तथा बाजारों व आर्थिक पहुंच पर संभावित प्रतिबंधों से संयोग रखता है। सन् 1990 से, खाड़ी युद्ध और अफगानिस्तान अभियान के चलते विश्व राजनीति में आई अनिश्चितता की वजह से दोनों देश एक बहुध्रुवीय विश्व का समर्थन कर रहे हैं। भारत और चीन के लिए उत्तरी अमेरिका और मध्य-पूर्व में मिसाइल हमले, सैन्य तैनाती, सरकार में बदलाव और सीमारहित घटना प्रमुख चिंताएं थीं दोनों घरेलू परिस्थितियों में इन घटनाओं के संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंतित थे।
इस मामले पर, दोनों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में और बहुपक्षीय संस्थाओं जैसे कि रूस-भारत-चीन त्रिभुज, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और अन्य जगहों पर अपनी स्थितियों को समन्वयित किया है। ब्रिक्स के माध्यम से, भारत और चीन ने सुधार की ज़रूरत और बदले समय को दिखाने के लिए ब्रेटटों वुड्स संस्थाओं को पुनः संगठित करने पर रोशनी डाली है। सन् 2010 से, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में अपने मतदान के हिस्से को बढ़ाकर उनके प्रयास अंशतः सफल हुए।
भारत और चीन ने, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका (बेसिक प्रारूप में) की तुलना में, जलवायु परिवर्तन पर बात करते हुए एक जैसा लेकिन जिम्मेदारियों को अलग बताते हुए व्यक्त किया है। विकसित देशों द्वारा दो से तीन शताब्दियों के औद्योगिकरण से निकले कुल उत्सर्जन पर चर्चा करने पर हठ दिखाने के बावजुड़बोर सन् 1997 के क्योटो समझौते के बावजूद, बेसिक देशों ने अपने उत्सर्जन में कमी को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है। वुहान बैठक के परिणाम ने कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए नई तरह की कार्रवाई के लिए भारत और चीन के लिए समृद्ध लाभांश दिया है। इस तरह के सहयोग की दिशा सकारात्मक रही है जो कम समय में हुए कई उच्चस्तरीय दौरों और हाल में फैलते सहयोग अजेंडा में दिखाई दी है। यदि वे अपनी मूल समस्या को सुलझा लें तो इन देशों के बीच स्थाई रूप से शांति संभव है, तथा वे उस दिशा में आपसी अवधारणाओं को प्रभावित करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।

लेखक नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन के प्राध्यापक हैं।