चीन-भारत मानवीय आदान-प्रदान: यथा स्थिति और भविष्य के प्रचलन

जैसे ‘कम’ राजनीति के क्षेत्र में भारत और चीन के बीच में संचार का एक रास्ता है, सांस्कृतिक व लोगों की आपस में अदला-बदली राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग की तुलना में आगे बढ़ने के लिए आसान हैं।
by ल्वो श्याओछिन
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जनवरी 10, 2019: भारतीय मेडिकल छात्र, जो स्थानीय अस्पतालों में बतौर इंटर्न काम करते हैं, पारंपरिक चीनी लोक रिवाजों जैसे कि च्यांगसू प्रांत के लिएन्युनगांग शहर के तागांग समुदाय पर पेपर कटिंग का अनुभव लेते हुए।। वीसीजी

सन् 2014 में, जब से मोदी सरकार सत्ता में आई थी, चीन-भारत रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव देखे थे। भारत शुरुआत में चीन के प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड पहल को लेकर उदासीन था, और उसके बाद न्युक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) का सदस्य बनने और पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख पर बंदी और यूएन सिक्योरिटी कॉउंसिल द्वारा उसके मुखिया को “वैश्विक आतंकवादी” घोषित करने के प्रयासों पर असहमति हुई। डोकलाम क्षेत्र में सीमा पर गतिरोध और दलाई लामा की तथाकथित “अरुणाचल प्रदेश” की यात्रा ने द्विपक्षीय रिश्तों को पिछले कुछ सालों में बहुत नीचे ला दिया है। हालांकि, उनके ठंडे रिश्ते में थोड़ी गरमाहट आ गयी जब दोनों देशों के नेता नौवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जो श्यामन में हुआ और वुहान में अनौपचारिक बैठक हुई।
इस प्रक्रिया में, मानव संस्कृति के आदान-प्रदान ने चीन-भारत रिश्ते को गहरा बनाने में अहम किरदार निभाया है, और यह दोनों देशों में सहयोग के लिए तेजी से बढ़ता क्षेत्र बन गया है। मानवीय आदान-प्रदान की चार प्रमुख विशेषताएः
अब तक, भारत और चीन के बीच संस्कृति और मानवीय आदान-प्रदान ने जानी पहचानी संपूर्ण रूपरेखा बना ली है जो निम्नलिखित विशेष अभिलक्षण हैं:
पहला, द्विपक्षीय आवाजाही की संभावनाएं फैल गयी हैं, और द्विपक्षीय संचार निरंतरता से विस्तृत हुए हैं। सितंबर 2014 में, जब चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत की पहली यात्रा पर गए, चीन और भारत ने करीबी भागीदारी बनाने पर एक संयुक्त बयान दिया, जिसके अनुसार दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम शुरू किया जिसका मकसद पर्यटन, युवा, संग्रहालय, सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के लिए मंत्रीय स्तर सलाहकार तंत्र स्थापित करने, शास्त्रीय और समकालीन कामों के आपसी अनुवाद करने, फिल्मों का आदान-प्रदान, टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रसारण, और चीन में भारतीय भाषा और भारत में चीनी भाषा सीखाने के क्षेत्रों में संचार को बढ़ावा देना था। उसी के साथ, मीडिया में बातचीत, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्र ने दोनों देशों के बीच आगे सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान को बढ़ाया है। दूसरा, चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान के संस्थाकरण में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे तंत्रों की स्थापना जैसे चीन-इंडिया थिंक टैंक फॉरम, चीन-इंडिया फॉरम फ़ॉर लोकल कोऑपरेशन, चीन-इंडिया यूनिवर्सिटी लीडर्स फॉरम, चीन-इंडिया दोनों देशों के बीच फॉरम ने सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान के लिए प्रचार को नियमित किया है, और कुछ हद तक उनकी स्थिरता और आगे के विकास का भरोसा दिया है।
तीसरा, सालों के प्रयास के बाद, चीन और भारत ने सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के विनिमय के लिए जैविक रूपरेखा तैयार की है, जिसमें उच्च नेता सभी दिशाओं में मार्गदर्शन करता है, विशेष विभाग समन्वय के लिए जिम्मेदारी लेता है, कई तंत्र संस्थागत गारंटी देते हैं, व्यपारिक उपक्रम अग्रणी की भूमिका निभाते हैं और सभी क्षेत्र के लोगों ने हिस्सा लिया। चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की साझा बैठक में भारत-चीन की पहली उच्चस्तरीय मानवीय आदान-प्रदान तंत्र की बैठक दिसंबर 21, 2018 में नई दिल्ली में हुई। यह वुहान में सिर्फ सर्वसम्मति को लागू करने के लिए ही नहीं बल्कि भारत और चीन के बीच मानवीय​ आदान-प्रदान और संस्कृति की समीक्षा के लिए और भविष्य के विकास की योजना की रूपरेखा निश्चित करने के लिए भी थी।
जैसा कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बैठक में कहा था, इस प्रणाली की मानव संस्कृति आदान-प्रदान आदान-प्रदान के लिए मार्गदर्शक किरदार निभाने की उम्मीद है, और दोनों देशों से गुजारिश की है कि संपूर्ण संसाधनों के इस्तेमाल के लिए सभी मशीनरी और अपने-अपने सुविधाओं को संचालित करें और दोनों देशों के बीच नए ऐतिहासिक युग में विकास और सफलताएं पाने के लिए लोगों से लोगों के विनिमय को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। आखिरकार, चीन और भारत के बीच बढ़ते मानव संस्कृति आदान-प्रदान बहुपक्षीय प्रणाली से जुड़े हैं। भारत और चीन के बढ़ते संवादों के बीच उन बहुपक्षीय तंत्रों जैसे कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और चीन-भारत-रूस त्रिपक्षीय तंत्र, बहुपक्षीय सांस्कृतिक व मानवीय आदान-प्रदान भी तेजी से बढ़ गयी है। ब्रिक्स की रूपरेखा के दौरान, एक बहुपक्षीय मानवीय संवाद मंचों जैसे कि ब्रिक्स यूथ फॉरम, ब्रिक्स वैलनेस वर्कशॉप, ब्रिक्स लीगल फॉरम, ब्रिक्स अर्बनाइजेशन फॉरम, और ब्रिक्स अकादमिक फॉरम ने भारत और चीन के बीच मानवीय आदान-प्रदान को बहुत विस्तृत क्षेत्रों में बढ़ाया है।

अवसर और चुनौतियां
दोनों देशों के बीच लगातार सुधरते द्विपक्षीय रिश्तों और संवाद को बढ़ावा देने की बदौलत, सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के विनिमय भारत और चीन के बीच गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार हुए हैं, और प्रबुद्ध आयाम दिखाए हैं। हालांकि, आगे अब भी कुछ चुनौतियां हैं। पहला, आपसी व्यक्तिगत यात्राएं दोनों देशों की बड़ी जनसंख्या की तुलना में नगण्य हैं, और दो लोगों में आज भी आपसी समझ की कमी है व आपस में बात करने की तीव्र इच्छा शक्ति की कमी है। सन् 2017 में, सिर्फ दस लाख आपसी यात्राएं की गईं और भारत में चीनी यात्रियों की संख्या दो लाख से कम थी, जो पिछले साल चीन की यात्रा पर गए भारतीयों का एक चौथाई हिस्सा था। सन् 2016 में, पांच लाख चीनी पर्यटकों ने म्यांमार की यात्रा की। यह दर्शाता है कि चीनी पर्यटकों ने भारत में कम रुचि दिखाई है।
दूसरा, बहुत लंबे समय से, चीन में भारतीयों की जनसंख्या और भारत में चीनियों की बेहद सीमित रही है, इन दोनों देशों में बेहद कम लोग हैं जो गहराई से एक-दूसरे के रीति-रिवाजों, लोककथा और संस्कृति की समझ रखते हैं। इसके परिणाम स्वरूप, दो लोग एक-दूसरे की कार्यवाई के औचित्य को समझ नहीं पा रहे हैं, जिसकी वजह से द्विपक्षीय रिश्तों में गलतफहमी हुई। सन् 2017 में, चीन में भारतीय विद्यार्थियों की संख्या 20,000 तक पहुंच गई, लेकिन भारत में चीनी विद्यार्थीयों की संख्या सिर्फ़ 2000 है। अंशतः भारत की सख्त वीजा नीति की वजह से सिर्फ कुछ ही चीनी भारत में काम करने की मंजूरी पाते हैं।
तीसरा, दोनों देशों के मीडिया संस्थान, खासकर भारत के, एक-दूसरे के खिलाफ नकारात्मक खबरें दिखाना चाहते हैं जिसका मकसद बाजार की प्रतियोगिता में सबसे आगे रहना है। कई बार तो वे फेक न्यूज़ का सहारा लेते हैं, जो एक-दूसरे की जनता की जानकारी को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं।
चौथा, चीनी और भारतीय विचार मंच एक-दूसरे के देशों के अनुसंधान और आदान-प्रदान आयोजित करने पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। बहुत कम विद्वान संबंधित अकादमिक अनुसंधान और क्षेत्र सर्वेक्षणों में भाग लेने में रुचि रखते हैं। दिसंबर 11, 2016 में जब से पहला चीन-भारत थिंक-टैंक मंच शुरू हुआ, दोनों देशों के बीच विचारों का आदान-प्रदान तेजी पर है, जिसने चीन और भारत के विद्वानों के बीच की आपसी समझ को बेहतर किया था। हालांकि, एक-दूसरे के देशों को गहराई से समझने वाले विद्वानों की संख्या लगभग नगण्य है।
पांचवा, अपनी बड़ी शक्ति भावनाओं और अपने को कमजोर समझने की सोच से, चीन को लेकर भारतीयों की नकारात्मक समझ के बढ़ने की उम्मीद है। इसी तरह, 2016 में जब दोनों देशों ने करीबी उच्चस्तरीय संवाद देखा, जब मैंने अमेज़ॉन इंडिया पर चीन पर 15 सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी किताबों की खोज की तो, मैंने पाया कि उन में से तीन आर्ट ऑफ वॉर (सुन ज़ी द्वारा प्राचीन चीनी फौज प्रकरण), तीन सन् 1962 के चीनी-भारतीय सीमा संघर्ष पर, चार चीन-भारत की 21वीं शताब्दी की प्रतियोगिता पर, उन में से दो इंटरनेट के सबसे बड़ी कंपनी अलीबाबा और उसके संस्थापक जैक मा पर, एक चीन-पाकिस्तान रिश्तों पर और आखिर के दो विवादात्मक हैं। यह साफ तौर पर भारतीय जनता की चीनियों से जुड़ी भावनाओं का असर दिखाता है। बहुत से चुनौतियां होने के बावजूद, भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और मानवीय आदान प्रदान पर्याप्त मौके हैं। वुहान में, 2018 में दोनों देशों के नेताओं में सर्वसम्मति हुई, जहां सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान ने बड़ा हिस्सा घेरा है, यह दिखाते हुए की भारत और चीन के शीर्ष नेता चीन और भारत ऐसे विनिमयों को बहुत महत्व देते हैं। चीन-भारत उच्चस्तरीय मानवीय आदान-प्रदान तंत्र पर सर्वसम्मति को पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था। यह दोनों देशों के सांस्कृतिक और मानवीय आवाजाही को बढ़ावा देने की मजबूत इच्छाशक्ति को जताता है। भारत और चीन के बीच बतौर संचार का वाहक ‘छोटी’ राजनीति के क्षेत्र में, सांस्कृतिक और मानवीय आवाजाही सुरक्षा और राजनीतिक सहयोग की तुलना में आसानी से आगे बढ़ सकते है। इसके अलावा, चूंकि दोनों पड़ोसी हिमालय से अलग हुए हैं, चीन और भारत दोनों एशिया में बड़े देश हैं। भविष्य में, दोनों देशों के बीच घरेलू विकास और क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामले में सहयोग नियमित हो जाएगा। यह, कुछ हद तक, आपसी समझ को गहरा करेगा और द्विपक्षीय सांस्कृतिक विनिमय को बढ़ावा देगा। सबसे महत्वपूर्ण, बतौर दो प्राचीन सभ्यताएं, चीन और भारत ने एक-दूसरे से पिछले 2000 सालों में सीखा है, और अनगिनत साहित्यिक और कलाकृति अनूठे को छोड़ा है जो उनकी सहस्राब्दी पुरानी दोस्ती को आगे जारी रखने के लिए खाद देता है।

लेखक रनमिन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना में पीएचडी प्रत्याशी हैं।