ब्रिक्स देशों का सहयोग व विकास और चीन-भारत सहयोग
2017 में इस साल ब्रिक्स का अध्यक्ष देश होने के नाते चीन ब्रिक्स प्रणाली को दूसरे स्वर्णिम दशक में प्रवेश करने का नेतृत्व कर रहा है। पिछले दस सालों में ब्रिक्स प्रणाली ने नवोदित बाजार देश की एकता व सहयोग का नया युग शुरू किया। ब्रिक्स देशों ने विश्व आर्थिक विकास को बढ़ाने, वैश्विक प्रशासन को परिपक्व बनाने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लोकतंत्रीकरण को आगे बढ़ाने के कई शानदार अध्याय लिखे हैं।
ब्रिक्स प्रणाली विश्व के बहुध्रुवीकरण और आर्थिक भूमंडलीकरण की प्रवृत्ति से मेल खाती है, जो पांचों देश द्वारा सहयोग व विकास की इस मांग पर आधारित समान विकल्प है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने वर्णन किया कि ब्रिक्स के पांच देश मानों पांच उंगलियां हों, जो हाथ बढ़ाने से उंगलियों की भिन्न-भिन्न लंबाई होती है जबकि मिलकर एक मुट्ठी बन जाती है। सहयोग से विकास की खोज करने के विचार के निर्देशन में पिछले दस सालों में ब्रिक्स देशों की शक्ति निरंतर मज़बूत होती रही है। विश्व अर्थतंत्र में पांच देशों की कुल आर्थिक मात्रा का अनुपात भी 12 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत तक उन्नत हो चुका है। व्यापार रकम का अनुपात 11 प्रतिशत से 16 प्रतिशत तक, विदेशी पूंजी निवेश का अनुपात 7 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक बढ़ गया है। विश्व आर्थिक विकास में पांच देशों की योगदान दर भी 50 प्रतिशत को पार कर गई है। इसके साथ ही, ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग शुरू के आर्थिक व व्यापारिक सहयोग से आज की राजनीतिक सुरक्षा, आर्थिक वित्त और मानव व सांस्कृतिक आदान-प्रदान तीन स्तंभों में विस्तृत हो गया है। वे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक उल्लेखनीय शक्ति बन चुके हैं।
सहयोग से विकास को आगे बढ़ाना और घनिष्ठ सहयोग का विकास करना ब्रिक्स के सदस्य देशों द्वारा पिछले दस सालों में ब्रिक्स प्रणाली के विकास में प्राप्त सबसे बड़ा सबक है। अब दुनिया फिर एक बार नए ऐतिहासिक चरण में खड़ी हुई है। हालांकि विश्व अर्थतंत्र में अच्छे परिवर्तन आये हैं, फिर भी गहरे गतिरोधों का हल नहीं हो चुका है। अनिश्चितताएं अपेक्षाकृत ज़्यादा हैं और अंतर्राष्ट्रीय समंव्य मुश्किल से किया जाता है। विकास, शरणार्थी समस्या, मौसम परिवर्तन, आतंकी विरोधी आदि वैश्विक चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। लोकलुभावनवादी, उग्रवादी, भूमंडलीकरण विरोधी आदि विचारधाराएं और व्यापार संरक्षणवादी की प्रवृत्ति नजर आ रही है। ब्रिक्स देश कैसे नयी चुनौतियों का सामना करते हैं। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का व्यापक ध्यान खींचा है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि साझेदारी का अर्थ व मूल्य है सुभीतापूर्ण स्थिति में समृद्धि का साझा उपभोग करना ही नहीं, बल्कि मुसीबतों में हाथ मिलाकर आगे बढ़ना और महत्वपूर्ण है। निसंदेह ब्रिक्स देशों को सहयोग व विकास में जवाब खोजना चाहिए। नये साल की शुरूआत में शी चिनफिंग ने ब्रिक्स देशों के नेताओं के नाम पत्र भेजकर श्यामन भेंटवार्ता में चीन के चार सुझाव पेश कियेः पहला, यथार्थ सहयोग को गहरा करना और समान विकास को आगे बढ़ाना है। दूसरा, वैश्विक प्रशासन को मजबूत करके एक साथ चुनौतियों का सामना करना है। तीसरा, मानव व सांस्कृतिक आदान-प्रदान करके जनमत आधार को प्रगाढ़ करना है। चौथा, प्रणाली निर्माण को आगे बढ़ाकर और विस्तृत साझेदारी संबंधों की रचना करना है। निसंदेह इसने ब्रिक्स देशों को सहयोग को मज़बूत करने और हाथ मिलाकर आगे विकास के लिए दिशा निर्धारित किया है।
ब्रिक्स देशों के विकास की विविधतापूर्ण विशेषताएं हैं। उनके बीच आपसी आपूर्ति की बड़ी संभावना है और एक दूसरे के बीच सहयोग करने में भारी गुंजाइश है। उदाहरण के तौर पर चीन में परिपूर्ण औद्योगिक प्रणाली है, उत्पादकों की स्पष्ट श्रेष्ठताएं हैं, बुनियादी संरचनाओं के निर्माण में प्रचुर अनुभव हैं और मज़बूत शक्ति भी है। जबकि भारत “विश्व दफ़्तर” है, आईटी की स्पष्ट श्रेष्ठताएं हैं, बैंकिंग उद्योग की ख़ास विशेषताएं भी हैं। भारत में भी आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की बड़ी लहर उभर रही है। विश्वास है कि जब ब्रिक्स देश एकजूट होंगे, तो वे अवश्य ही ब्रिक्स सहयोग को गहरा करने में नयी प्रेरणा शक्ति डाल सकेंगे, वैश्विक प्रशासन को परिपक्व करने के लिए नये प्रस्ताव प्रदान कर सकेंगे, विश्व आर्थिक विकास के लिए नया योगदान प्रदान कर सकेंगे, पांचों देशों के खुद के विकास और विश्व के विभिन्न देशों के विकास के लिए उज्ज्वल भविष्य की रचना कर सकेंगे।
ब्रिक्स प्रणाली के अहम सदस्य देश होने के नाते चीन-भारत सहयोग न सिर्फ़ दोनों देशों की मांग है, बल्कि दोनों देशों के खुद के विकास का आवश्यक विकल्प भी है। दोनों देशों की विकास विचारधाएं मिलती जुलती हैं, विकास की रणनीति समान है, विकास की आपूर्ति श्रेष्ठ हैं, समान हित मतभेदों से बड़े हैं और सहयोग की मांग प्रतिस्पर्द्धा से बड़ी है। इधर के सालों में चीन व भारत के संबंधों के विकास की प्रवृत्ति बरकरार रही है। दोनों के बीच राजनीति, अर्थतंत्र व व्यापार, संस्कृति, स्थानीय सरकार, कानूनी सुरक्षा आदि के सहयोग में उल्लेखनीय उन्नति आयी है। ख़ास तौर पर आर्थिक व व्यापारिक क्षेत्र में दोनों के बीच आदान-प्रदान व सहयोग बहुत व्यस्त रहे हैं। भारत में चीनी कारोबारों की पूंजी करीब 5 अरब अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंची है और चीनी कारोबारों का पूंजी निवेश अहम है। 500 से ज़्यादा चीनी उद्यमियों ने भारत में अपनी शाखा या कारखाने खोले हैं। ह्वावेई और चोंगशिंग आदि प्रारंभिक “पायनियर” के अलावा, ह्वाश्या शिंगफ़ू आदि चीनी मशहूर कारोबारों ने भी क्रमशः भारत में पूंजी निवेश किया और नये उद्योग शहरों का निर्माण किया। ओपो, विवो, श्याओमी और लेनोवो आदि चीनी कारोबार का भारत में तेज़ी विकास हो रहा है। 2016 में चीन व भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार रकम 71 अरब 18 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी। इस साल जनवरी से मई माह तक चीन-भारत द्विपक्षीय व्यापार रकम 33 अरब 29 करोड़ अमेरिकी डॉलर रही, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 22.6 प्रतिशत अधिक रही। चीन के साथ भारत के निर्यात में 46.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। रेल मार्ग, संचार उपकरण, स्वच्छ ऊर्जा, इंजीनियरिंग उपकरण और उद्योग उद्यानों का निर्माण आदि क्षेत्र दोनों देशों के कारोबारों के सहयोग का विस्तार व गहरा करने का प्लेटफ़ार्म बन चुके हैं। साथ ही भारत के सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्युटिकल, परामर्श आदि श्रेष्ठ क्षेत्रों के कारोबारों ने भी क्रमशः चीनी बाज़ार में प्रवेश किया और उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।
चीन व भारत दोनों अहम पड़ोसी देश हैं। इधर के सालों में चीन-भारत संबंध विकास की प्रवृत्ति पर कायम है। एक स्थिर व स्वस्थ चीन-भारत संबंध दोनों देशों और दोनों देशों की जनता के बुनियादी कल्याणों से मेल खाता है, साथ ही इस क्षेत्र व विश्व की शांति, स्थिरता व विकास के लिए भी लाभदायक है।
चीन-भारत संबंध में भारी निहित शक्ति है। दोनों को उभय प्रयास करके हाथ मिलाकर आगे बढ़ना चाहिए, राजनीतिक आपसी विश्वास को प्रगाढ़ करना चाहिए और मतभेदों का अच्छी तरह निपटारा करना चाहिए, ताकि द्विपक्षीय संबंध सही रास्ते की ओर निरंतर आगे विकसित हो सके।