भारत-चीन सहयोग के लिए आमने-सामने की नींव

‘एशियाई शताब्दी’ के वास्तविक आगमन के लिए संयुक्त प्रयास और भारत और चीन के साथ में उदय की जरुरत है। इसी तरह, बढ़ते संरक्षणवाद को नियंत्रित करने और समान वैश्विक समृद्धि को बढ़ावा देने में उनका सहयोग बेहद अहम है। 
by हु शिशंग
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2014 के 18 सितंबर को इंडियन कौंसिल अफ़ वल्ड अफ़ैर्स में भाषण देते हुए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग।(शिन्हुआ)

अप्रैल 27 से 28, 2018, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में अनौपचारिक बैठक की। जहाँ उन दोनों नेताओं ने भारत-चीन के लंबे समय के रिश्तों को लेकर व्यापक और सामरिक महत्व के मुद्दों पर अपने विचार साझा किये।
जब से दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित किये यह एक महत्वपूर्ण राजनयिक व्यवस्था है। बैठक ने साबित किया कि दोनों देश द्विपक्षीय बातचीत को कितनी अहमियत दे रहे हैं और यह द्विपक्षीय रिश्तों के भविष्य में विकास के लिए नीवं रखने, रास्ता तैयार करने और नया अजेंडा निर्धारित करने की उम्मीद की जा रही है।
बहुत लंबे अर्से से, चीन-भारत के रिश्ते को शीर्ष कूटनीति द्वारा चलाया जा रहा है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की 1949 में स्थापना और1950 में भारत की आजादी के बाद, उच्चस्तरीय मार्गदर्शन ने हमेशा चीन-भारत के रिश्तों के बीच सहारे का काम किया है। खासतौर पर पिछले साल जब डोकलाम विवाद हुआ, दोनों नेताओं ने विस्तृत और दूर की सोच कर दोनों देशों के बीच पिछले तीस साल के सबसे बड़े टकराव को हल किया।
डोकलाम की घटना ने दोनों देशों के नेताओं को उच्चस्तरीय बातचीत के सम्पूर्ण महत्व को समझने में मदद की। पिछले सितंबर में जब श्यामन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया, दोनों देशों के उच्चस्तरीय अधिकारियों ने लगातार संपर्क बनाए रखा, बेहद विस्तार से संवाद किये और सहयोग तंत्र और विभिन्न क्षेत्र के अवसरों पर जानकारी साझा की। असाधारण तौर पर करीबी बातचीत को अपनाते हुए, दोनों देशों ने प्रभावी रूप से मतभेदों पर नियंत्रित किया और आपसी विश्वास और सहयोग को मज़बूत किया है। दोनों नेताओं के बीच की अनौपचारिक बैठक ने बातचीत के दौर शुरू करने में अहम किरदार निभाया।
वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां बेहद नाटकीय ढंग से बदली हैं। प्रमुख देशों के रिश्तों में बढ़ती अनिश्चितता की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, भारत-चीन संबंध ने क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति पर अधिकाधिक प्रभाव बनाया है और अधिक स्वतंत्र हुए हैं। साथ ही प्रमुख देशों की तरह इनके रिश्ते विकसित हुए हैं।
एक मजबूत राजनीति के उदय के लिए दोनों देशों के नेताओं को बड़े स्तर पर सोचने, सामरिक संपर्क को बढ़ाने और धुंधली परिस्थितियों में सच बताने की जरूरत है। उच्चस्तरीय कूटनीति ने न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों को स्थिर किया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बदलाव से आई चुनौतियों से निपटने के लिए नयी ताकत को बढ़ाया है और साथ मिलकर क्षेत्र और विश्व के विकास को प्रोत्साहित किया है।
द्विपक्षीय रिश्तों के लिए, टकरावों पर नियंत्रण को मजबूत करने और भेदभाव को सँभालने की क्षमता का निर्माण के साथ ही, चीन और भारत को संभावित टकराव की घेराबंदी के लिए, अनुकूल परिस्थित बनाने और आपस के अंतर को मिटाने की मजबूत नींव के लिए नए, विस्तृत और उच्चस्तरीय सहयोग के लिए प्रयास करना पड़ेगा। विशेष रूप से विकास के क्षेत्र में, विश्व के दो सबसे तेजी से बढ़ती जनसँख्या वाले देश के बतौर, चीन और भारत को लगातार सहयोग में नयी उर्जा भरने और शक्तिशाली इंजन को ईंधन देना चाहिए।
द्विपक्षीय रिश्तों के नए आधार और नए लक्ष्य निर्धारण के लिए दोनों देशों को उच्चस्तरीय प्रमुख कूटनीतिज्ञ के निर्देश को बढ़ने की जरुरत है। यह दोनों देशों के आर्थिक विकास, सामाजिक प्रबंधन और विजयी सहयोग पर रणनीतिक ध्यान रखेगा।
जैसे ही दो देश एक जैसी रूचि और मसला साझा करते हैं, क्षेत्र पर सयुंक्त शासन में सहयोग को मजबूत करना और जरुरी होता है। एक ऐसा विकास जिसकी शुरुआत शीर्ष स्तरीय बैठकों से हुई है। दोनों देश राष्ट्रीय कायापलट समझना चाहते हैं जिसका मतलब है कि वे पड़ोसी की प्रतिस्पर्धा से बच नहीं सकते हैं। बिना किसी रणनीतिक आदान-प्रदान के दो देश आसानी से विनाशकारी दुश्मनी और भौगोलिक दुर्घटनाओं का शिकार हो सकते हैं। पिछले कुछ सालों में यह एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति बन गयी है जो दोनों देशों के पुनरुत्थान के संसाधनों को लील रही और उनके विकास के खर्च को बढ़ा रही है।
भू राजनीतिक विवादों को बचाते हुए दोनों सरकारों के सोचने के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है कि वे कैसे समझें कि पड़ोसी समुदायों में उनका राष्ट्रीय हित है। सिर्फ रणनीतिक संवाद को बेहतर कर, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ा कर और प्रमुख देशों की तरह उनके संबंधित कार्यों को पंक्तिबंद कर उसी तरह दो देश और क्षेत्र विजयी सहयोग को समझ सकते हैं। शीर्ष स्तर का अदान-प्रदान बेहद नाजुक किरदार निभाता है जिसके माध्यम से दो देश किसी विशेष असहमति को ठीक कर और विकास और सहयोग की नजदीकी भागीदारी कर सकते हैं। साथ ही दोनों देशों द्वारा अपने सामान रुचियों के क्षेत्र में साझा किये हुए आदेश के अनुसार क्षेत्रीय विजयी सहयोग को महसूस कर सकती हैं।
यूएस के अंतररष्ट्रीय संदर्भ में बहुपक्षीय तंत्र के लगातार पीछे हटने और वैश्विक शासन और संरक्षणवाद बढ़ाने, चीन और भारत, दो उभरते हुए बड़े देश भू राजनीतिक अर्थव्यवस्था में ज्यादा महत्वपूर्ण रणनीतिक किरदार निभा रही हैं। अब उन्हें अंतररष्ट्रीय क्रम में सुधार के लिये साथ में अगुवाई करने की जरुरत है।
चीन और भारत ने आर्थिक वैश्वीकरण को बढ़ावा देने, मुक्त व्यापार, दोहा डब्ल्यूटीओ राऊंड वार्ता और जलवायु परिवर्तन के लिए सफल सहयोग किये थे। बहुत हद तक दो बेहद बड़े उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के तेज विकास ने व्यापार संरक्षणवाद और एकतरफा को बढ़ाने में भूमिका निभाई है। विकास के लिए दोनों देशों को चुनौती का सामना कर “जिम्मेदार प्रमुख देश” की भूमिका निभानी होगी और स्वस्थ रूप से वैश्विक शासन में खाली पड़ी जगह को भरनी होगी जो कि पश्चिमी देशों के चले जाने बाद हुई है। ‘एशियाई शताब्दी’ के वास्तविक आगमन के लिए संयुक्त प्रयास और भारत-चीन के साथ में उदय की जरुरत है। इसी तरह, बढ़ते संरक्षणवाद को नियंत्रित करने और समान वैश्विक समृद्धि को बढ़ावा देने में उनका सहयोग बेहद अहम है। इस परिप्रेक्ष्य में, चीनी और भारतीय नेताओं के बीच हुई अनौपचारिक बैठक बेहद अर्थपूर्ण थी।

लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ़ साउथ एंड साउथईस्ट एशिया और औशेयनियन स्टडीज चाइना इंस्टिट्यूटस ऑफ़ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशनस के निर्देशक और अनुसंधानकर्ता हैं।