एससीओ के लिए नए मौके और चुनौतियां

विस्तृत एससीओ के लिए कुछ बड़ा करने का यह एकदम सही मौका है।
by चांग शूच्येन
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मई 7, 2018: छिंगताओ में यात्री जहाजों का घरेलू बंदरगाह। छिंगताओ 18वें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन का मेजबान शहर है। [शिन्हुआ]

2001 में अपनी स्थापना के बाद से 2017 में भारत और पाकिस्तान शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में शामिल होना पहला विस्तार था। एससीओ एक नए तरह का क्षेत्रीय संगठन है जो शीतयुद्ध के बाद काल में सुरक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग को जोड़ता है। पश्चिमी अंतररष्ट्रीय संगठन नहीं होने के नाते, इसके सदस्य राज्य यूरोशिया महाद्वीप के बदलाव से गुजर रहे या उभरते हुए देश हैं।
संयुक्त जनसंख्या और इसके सदस्य राज्यों के क्षेत्र के मामले में, एससीओ विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रीय सहयोग संगठन है। शंघाई विचारधारा द्वारा मार्गदर्शित, “आपसी भरोसा, आपसी फायदे, समानता, परामर्श, विभिन्न सभ्यता के लिए सम्मान और साझा विकास” की तलाश में, संगठन एक आदर्श का पालन करता है जिसके अंतर्गत खुलेपन को बढ़ावा देते हुए किसी भी तरह की न संधियों, न ही किसी देश या क्षेत्र के अंदरूनी मामलों में बाहरी दखलंदाजी करता है। इस भाव ने एक नए तरह के राज्य से राज्य के रिश्ते और क्षेत्रीय सहयोग प्रतिमान स्थापित किया है जिसमें स्थायी शांति और मैत्री, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सुरक्षा के नए संकल्पनाओं के साथ पेश करना, सहयोग और कूटनीति है जो पुरानी हो चुकी शीत युद्ध मानसकिता के ठीक उलट है और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के सिद्धांतों और प्रथा को समृद्ध करेगा।
चीन के प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड पहल की प्रगति के साथ-साथ, मानव साझे भाग्य वाला समुदाय आकार ले रहा है। जैसा कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा, एससीओ निरंतर मानव साझे भाग्य वाले समुदाय के निर्माण की ओर बढ़ रहा है और एक नए तरह के अंतरराष्ट्रीय रिश्ते के लिए आदर्श बना रहा है जिसमें सिर्फ साझी जीत सहयोग (विन-विन कोऑपरेशन) है।

पांच नए अवसर
नए ऐतिहासिक शुरुआत की दहलीज पर खड़े विस्तारित एससीओ निम्नलिखित अवसरों का सामना कर रहा है:
पहला, एससीओ का विस्तारण वैश्विक और क्षेत्रीय शासन में हिस्सा लेने के लिए संगठन की क्षमता को बेहतर बनाने के लिए सहायक है।
भारत और पाकिस्तान के जुड़ने से एससीओ की पहुंच पहली बार दक्षिण एशिया तक हो गयी है और यह पूर्वी, उत्तरी, केन्द्रीय और दक्षिणी यूरेशिया के कुछ हिस्सों वाले प्रदेश के परे एक गुट बनाने के लिए पश्चिम एशिया के क्षेत्र से जोड़ा है। इसके अतिरिक्त, एससीओ की भूमिका सुरक्षा, अर्थशास्त्र, ऊर्जा, संस्कृति तथा वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय खोज जैसे क्षेत्रों में अधिक विस्तृत हो गयी है। दक्षिण एशिया के दो प्रमुख देशों के तौर पर, भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा शासन, आर्थिक वृद्धि, प्रौद्योगिकीय खोज और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उनका एससीओ में शामिल होना शंघाई भाव (शंघाई स्पिरिट) के प्रभाव का मजबूत होने का सबूत है और वैश्विक और क्षेत्रीय शासन में भाग लेने में संगठन की क्षमता साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बेहतर हुई है।
दूसरा, एससीओ के सदस्य राज्यों के एक समान विकास के लक्ष्य संगठन की एकजुटता और आकर्षणशीलता को मजबूत करने में सहायक हैं। आज की दुनिया में, शांति और विकास मुख्य विषय हैं। लोकतंत्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में देरी एक न रुकने वाला दौर साबित हो रहा है। इस संदर्भ में, सभी एससीओ सदस्य “खुलेपन को बढ़ावा देने, सहयोग की कोशिश करने और विकास हासिल करने” का सम्मान अपने प्रशासनिक रणनीति के मूल के तौर पर कर रहे हैं।
राष्ट्रपति शी चिनफिंग, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) सेंट्रल कमिटी के महासचिव हैं, ने 19वीं सीपीसी नेशनल कांग्रेस को दी रिपोर्ट में उल्लेखित किया है कि चीन विश्व के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं करेगा बल्कि और अधिक खुला रखेगा।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि चीन बेल्ट एंड रोड पर प्राथमिकता से ध्यान देगा, “स्वागताकांक्षी (वेलकमिंग इन)” और “वैश्विक होना (गोइंग ग्लोबल)” को समान महत्व देगा, चर्चा और सहभागिता के माध्यम से साझा विकास के सिद्धांत का पालन करना, तथा नवपरिवर्तन क्षमता के निर्माण के लिए खुलेपन और सहयोग को बढ़ाएगा, चीन को आगे जमीन और समुद्री क्षेत्र से पूर्व और पश्चिम में जोड़कर नए मुकाम तक पहुंचेगा।
2020 से इस शताब्दी के मध्य तक, चीन हर पहलुओं में एक मध्यम समृद्ध समाज का निर्माण पूरा कर लेगा, बुनियादी आधुनिकीकरण का अहसास करें और फिर एक महान आधुनकि समाजवादी देश में बदलने में हर आयाम में बढ़ेगा। यह नए युग में चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद के विकास के लिए रणनीतिक विचार है।
मार्च 2018, प्रचंड बहुमत के साथ व्लादिमीर पुतिन रूस के फिर से राष्ट्रपति चुने गए। रूसी सरकार ने अपनी स्थिति को विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में मजबूत और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पहले जैसा करने को प्राथमिकता दी है।
राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कजाखस्तान में पहली बार सिल्क रोड आर्थिक मार्ग का निर्माण प्रस्तावित किया।कज़ाख राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने व्यक्तिगत तौर पर नई आर्थिक नीति “नुर्ली जहॉल्स” उज्ज्वल मार्ग (ब्राइट पथ) की घोषणा की और इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के साथ मिलाने के लिए प्रोत्साहित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अधिक समावेश और भारत दृष्टि 2020 के साथ विकसित देश बनाने का प्रयत्न कर रहा है।

अप्रैल 27, 2017: लिएन्युनगांग चीन-कज़ाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स कंपनी लिमिटेड यातायात कार्गो का एक ट्रक जिसे चाइना रेलवे एक्सप्रेस के माध्यम से यूरोप में भेजा जाना है। [वीसीजी]


पाकिस्तान ने सक्रिय रूप से बेल्ट एंड रोड पहल में भाग लिया है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण को बड़ा महत्व दिया है।
जब से शवकत मिर्ज़ियोये उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति चुने गए थे, उज़बेकिस्तान ने अधिक खुलेपन के राह की ओर शुरू किया। किर्गिस्तान और तजिकिस्तान स्थिर घरेलू राजनीतिक स्थितियों का आनंद ले रहे हैं और उनके एक दूसरे के सामाजिक और आर्थिक विकास नए स्तरों पर पहुंच रहे हैं।
ऐसा लगता है कि सभी एससीओ सदस्य राज्य पुनरुत्थान और विकास का रास्ता चल रहे हैं, और उनके राष्ट्रीय हित एससीओ के लक्ष्यों के साथ मजबूती से जुड़ रहे हैं। यह आगे जाकर संगठन की एकजुटता और आकर्षण को मजबूत करता है।
तीसरा, एससीओ का विस्तार क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने लिए अनुकूल है।क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाये रखना एससीओ सहयोग तंत्र का प्राथमिक काम है। नए सुरक्षा विचार जिसमें “आपसी भरोसा, आपसी फायदे, समानता और सहभागिता” तथा “सहयोग से सुरक्षा को बढ़ावा देना और विकास के माध्यम से सुरक्षा को जोड़ना” के दिशा-निर्देश एससीओ सदस्य देश शीत युद्ध मानसकिता से परे जा चुके हैं। और निरंतर राजनीति और सुरक्षा में आपसी भरोसा बढ़ाना तथा सुरक्षा खतरों से निपटने और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग के लिए नए सिद्धांत बनाना, संयुक्त कोशिशें आयोजित की गयीं। विस्तृत एससीओ से उम्मीद है कि वो क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाये रखने और आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद से लड़ने में बड़ी रचनात्मक भूमिका निभाएगा। 2017 में, जब भारत और पाकिस्तान एससीओ में बतौर पूर्ण सदस्य शामिल हुए थे, तब अतिवाद से लड़ने वाले शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर सबसे पहले दस्तावेजों में से एक था, जो दोनों देशों के एससीओ सुरक्षा सहयोग में भाग लेने की तुरंत जरुरत को साबित कर रहा है।
इसके साथ, एससीओ भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को सुधारने और दक्षिण एशिया की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पाक इंस्टिट्यूट फॉर पीस स्टडीज के निदेशक, मुहम्मद आमिर राणा, का मानना है कि बतौर अधिक संयुक्त मंच, एससीओ भारत और पाकिस्तान के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करने और दोनों के बीच तनावों को कम करने के मौके दे सकता है।
उन्होंने यह उल्लेख भी किया कि चीन, रूस और मध्य एशियाई देशों को उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान का एससओ में जुड़ना दोनों देशों को उनके आपसी संबंध सुधारने का एक मौका मिलेगा जिससे सभी सदस्य राज्य एकसाथ मिलकर क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को प्राप्त कर सकते हैं।
चौथा, एससीओ का विस्तार बेल्ट एंड रोड पहल को अमल में लाने को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय विकास के पहलों को सहमति से सुविधाजनक बनाने और बहुपक्षीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करने में अनुकूल है। क्षेत्रीय आर्थिक सहभागिता लंबे समय से एससीओ सदस्य देशों के सहयोग का केंद्र रहा है। एससीओ क्षेत्र समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों, विशाल उपभोक्ता बाजार और मजबूत वैज्ञानिक और शैक्षणिक संस्थाओं को बढ़ावा देता है तथा इसके सदस्य देश आर्थिक रूप से पारस्परिक संपूरक, उनके आर्थिक और व्यापार सहयोग की मजबूती के लिए अनुकूल परिस्थिति बनाते हैं। विस्तार के बाद, एससीओ प्रांत ने बेल्ट एंड रोड में शामिल लगभग सभी मार्गदर्शक और महत्वपूर्ण मामलों का समाविष्ट किया है।
उत्तर से दक्षिण की ओर जोड़ने की प्रमुख योजनाएं और संबंधित परियोजनाएं जिसमें सिल्क रोड आर्थिक क्षेत्र और यूरेशियन आर्थिक संघ के बीच के एकीकरण, चीन-रूस-मंगोलिया आर्थिक गलियारे का चीन-रूस पोलर सिल्क रोड के साथ एकत्रीकरण, कज़ाकिस्तान के उज्ज्वल मार्ग (ब्राइट पथ) का क्षेत्र व सड़क उपक्रम के साथ मिलाप और ट्रांस-कैस्पियन पूर्व-पश्चिम व्यापार का जुड़ाव तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे के संक्रमण गलियारे का काम शामिल है।
विशेष जोड़ मार्ग परियोजनाओं में रूस, भारत और ईरान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात मार्ग और भारत के ‘प्रॉजेक्ट मौसम’, स्पाइस रूट और फ्रीडम कॉरिडोर शामिल है। अपने सदस्य देशों के ट्रांसरीजनल सहयोग के लिए एससीओ एक प्राकृतिक मंच है। इस तरह की पहलें और योजनाएं एससीओ क्षेत्र में फले-फूलेंगी।
विस्तारित एससीओ सदस्य देशों से बेल्ट एंड रोड पहल के बेहतर जुड़ाव के लिए अन्य क्षेत्रीय विकास योजनाओं से समन्वय कर सकता है और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरईसीपी) पर वार्ता को सुविधाजनक बना सकता है। इस प्रकार, क्षेत्रीय व्यापार सहयोग और सुविधा के लिए अनुकूल परिस्थितयां प्रदान करना भी है।
पांचवा, एससीओ का विस्तार भारत और चीन के बीच सकारात्मक बातचीत को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल है। रूस के साथ इसके संबंधों की तुलना में, पाकिस्तान और मध्य एशिया के सदस्य देश, भारत के साथ चीन के रिश्ते सुधार के लिए बहुत सारी गुंजाइश छोड़ते हुए बार-बार उतार-चढ़ाव से गुजर रहे हैं।

नवंबर 29, 2016: शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की कानून स्थापना सहयोग की बैठक के दौरान स्वाट पुलिस अधिकारी दंगा विरोधी अभ्यास में गैर जानलेवा हथियारों के इस्तेमाल के बारे में बताते हुए। [वीसीजी]


एससीओ की रूपरेखा के अंतर्गत, चीन और भारत के पास साथ काम करने के लिए बहुत से उचित कारण हैं तथा वैश्विक और क्षेत्रीय शासन में संयुक्त रूप से भाग लेने के लिए अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकते हैं। प्रमुख कारकों में :
पहला, चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ चीन, रूस और भारत के बीच त्रिपक्षीय रिश्तों को बेहतर करने और ब्रिक्स के बहुपक्षीय तंत्र के अतिरिक्त, एससीओ चीन व भारत को गहरे संवाद, विवादों पर अच्छी तरह बात करने व उसे नियंत्रित करने और उनके द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक नए तरह का क्षेत्रीय तंत्र और मंच देता है।
दूसरा, चीन-भारत संबंध का इतिहास बहुत लंबा है। अप्रैल 1950, भारत पहला गैर समाजवादी देश बना जिसने चीन के साथ राजनायिक रिश्ते स्थापित किये।
ऐतिहासिक रूप से, दोनों पड़ोसी देशों ने साथ-साथ काम किया और एक दूसरे को साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ने में सहयोग किया। साथ ही एशियाई और अफ्रीकी देशों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता की वकालत करने और विश्व के शांति की रक्षा करने में उल्लेखनीय योगदान किया है। ये ऐतिहासिक उपलब्धियां कीमती संपत्ति बन गई हैं जिसे आज भी खुशी से याद करते हैं।
तीसरा, चीन और भारत एक जैसी राजनयिक दार्शनिकता साझा करते हैं। दोनों देश शांति और विकास की एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करते हैं और लंबे समय से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच तत्वों की वकालत करते हैं।
आखिरकार, चीन और भारत एससीओ के मंच के माध्यम से दोनों बहुपक्षीय संबंधों को सुधारने के इच्छुक हैं। एक पुरानी कहावत है कि दूर रहने वाले भाई की तुलना में पड़ोसी ज्यादा बेहतर है। एससीओ पड़ोसियों द्वारा बना हुआ एक गुट है। पड़ोसियों के साथ रिश्तों को संभालने के लिए भी शंघाई स्पिरिट मूलभूत सिद्धांत है। चीन और भारत दोनों अपने पड़ोसी देशों के साथ के रिश्तों को खुद की विदेश नीतियों के मूल के तौर पर देखते हैं।
अधिक ध्यान देने योग्य है कि, दोनों देशों के राष्ट्र नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने का प्रयत्न किया है। 2018 से, दोनों देशों के उच्च नेताओं के मार्गदर्शन में, चीन-भारत के रिश्तों में बहुत सुधार हुआ है।
दोनों देशों ने विशेषतौर पर व्यापार और सरहदपार नदी सहयोग जैसे क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण बातचीत बनाये रखा है। इस साल अप्रैल 27 से 28 को छिंगताओ में एससीओ शिखर सम्मेलन के ठीक पहले, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का दौरा किया। अपनी यात्रा की दौरान, राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री मोदी ने दीर्घकालीन, अंतरराष्ट्रीय माहौल पर असर डालने वाले समस्त रणनीतिक मुद्दों और द्विपक्षीय संबंधों के साथ- साथ उनके खुद के आपसी विकास परिकल्पना और घरेलू व विदेश नीतियों पर विचार साझा किए।
इस साल जून में प्रधानमंत्री मोदी ने छिंगताओ शिखर सम्मलेन में शामिल किया। किसी भारतीय राष्ट्र के मुखिया का कई बार चीन की यात्रा करना भारत-चीन संबंधों के इतिहास में असाधारण रहा है।

तीन नई चुनौतियां
नई अवसरों का सामना करते समय, विस्तृत एससीओ को तर्कसंगत रूप से नई चुनौतियों का सामना करना चाहिए:
पहला, अपने विस्तार के बाद से एससीओ को सदस्य राष्ट्रों के रवैये का समन्वय करने में कठिनाई होगी। संचालन और निर्णय लेने के मामले में संगठन “परामर्श से सर्वसम्मति तक पहुंचना” के मूलभूत सिद्धांत का पालन करता है। दक्षिण एशिया के दो बड़े देश के रूप में, भारत और पाकिस्तान स्वतंत्र विदेश नीतियों का अनुसरण करते है तथा कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में विरोधाभासी विचार हैं। ऐसे कारक एससीओ के लिए सदस्य देशों में समन्वय करने में अधिक मुश्किल खड़े कर सकते हैं और इसके सिद्धांत “परामर्श से सर्वसम्मति तक पहुंचना” के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
दूसरा, एससीओ आर्थिक सहभागिता से अधिक सुरक्षा सहयोग की ओर ध्यान देता है। सुरक्षा सहयोग और आर्थिक सहभागिता एससीओ के विकास के लिए दो प्रमुख चालक हैं। पिछले लगभग दो दशकों में, संगठन ने आर्थिक सहयोग की तुलना में सुरक्षा सहभागिता में अत्यधिक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। उदाहरण के तौर पर, एससीओ डेवलपमेंट बैंक और एससीओ मुक्त व्यापार क्षेत्र को स्थापित करने की योजनाओं का सफल होना अभी बाकी है। भारत और पाकिस्तान के जुड़ने के साथ, एससीओ को भारत-पाकिस्तान विवाद, कश्मीर मसला, अफगानिस्तान मामला और आतंकवाद विरोध जैसे मुद्दों के लिए अधिक उर्जा लगाने की जरुरत है। इस संदर्भ में, कैसे एससीओ को सुरक्षा सहयोग और आर्थिक सहभागिता में अपनी भूमिका संतुलित करनी चाहिए जो कि समस्या खड़ी कर रही है। कैसे बहुपक्षीय आर्थिक सहभागिता को एससीओ की रुपरेखा के अंतर्गत बढ़ाया जा सकता है?
किस तरह एससीओ को यूरेशियन आर्थिक संघ (यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन) और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संघ (आसियान) जैसे पड़ोसी अर्थव्यवस्था एकात्मता तंत्रों के साथ व्यवहारिक सहयोग आयोजित करना चाहिए ? ऐसे सवाल एससीओ सदस्य देशों के लिए चिंतन के लायक हैं।
तीसरा, एससीओ अब भी पश्चिमी देशों से अवरोध का सामना कर रहा है। वर्तमान में एससीओ सबसे बड़ा गैर-पश्चिम क्षेत्रीय संगठन है। लंबे समय तक, इसे पश्चिमी देशों के लिए मददगार नहीं माना जाता रहा है। यहां तक कि पश्चिमी देशों द्वारा इसे ‘पश्चिमी विरोधी संगठन” या ‘पूर्व का नाटो’ कहा जाता रहा है। इस प्रकार, पश्चिमी देश प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में रहने के बजाय रणनीतिक तौर पर एससीओ पर करीबी नजर बनाए रखते हैं।
एससीओ का विस्तार पश्चिमी देशों के दबदबे को रोकने की क्षमता को मजबूत कर सकता है लेकिन संगठन को पश्चिमी घुसपैठ से अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।

पड़ोसियों के साथ सहयोग की शुरुआत के साथ
आमतौर पर एससीओ विस्तार के फायदे उसके नुकसान की तुलना में अधिक हैं। अवसरों को पकड़ने के दौरान संगठन को चुनौतियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। चुनौतियों का सामना करने के दौरान अपनी संभावनाओं के प्रति आशावादी होना चाहिए और अपने सदस्य देशों के समान हित को इस आधार पर बढ़ाना चाहिए कि कैसे एक नए तरह के क्षेत्रीय शासन प्रणाली और साझा भविष्य वाले क्षेत्रीय समुदाय को विकसित कर सके। निश्चित रुप से, आगे बढ़ने के लिए एससीओ एक बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक अवसर और ऐतिहासिक अवसर का सामना कर रहा है।
आपसी भरोसा, आपसी फायदा, समानता और सहभागिता वाली उसकी सुरक्षा संकल्पना समय की जरूरत के अनुरूप हैं, उसके सदस्य देशों के भले के लिए और क्षेत्रीय विकास के हितों में है।भूमंडलीकरण के युग में, बहुत सारे हितों के मिश्रित होने के साथ, सभी देशों को बीते समय के मतभेदों को दूर करते हुए विजय या बहुविजय के परिणामों को पाने के लिए समान भू क्षेत्र और सहयोग मांगना चाहिए।
बढ़ा हुआ एससीओ अशांति फैलाने वाला नहीं बल्कि वैश्विक और क्षेत्रीय शांति का प्रवर्तक है। 1990 में शीत युद्ध के अंत के बाद, दो ध्रुवी देशों के धराशायी होने के बाद से अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में सौहार्द और स्थिरता पहले जैसी नहीं हुई।
‘ऑपेरशन डेजर्ट स्टॉर्म’ से कोसवो युद्ध तक, अफगान युद्ध से इराक युद्ध और रूसो-जॉर्जियन संघर्ष तक, रंग क्रांति से अरब क्रांति तक, यूक्रेन संकट से सीरियाई संघर्ष तक, लगभग सभी क्षेत्रीय टकराव पश्चिमी देशों से संबंधित कारकों द्वारा भड़काए गए थे।
इस मिथक पर दृढ़ रहते हुए कि उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्य मानव समाज के विकास की समाप्ति है, पश्चिमी देश दुनिया भर में विस्तार और प्रभाव की खोज जारी रखते हैं। लेकिन एससीओ इससे बिल्कुल अलग है। बदलते अंतराष्ट्रीय जलवायु के बावजूद, बढ़ा हुआ एससीओ शंघाई भावना (शंघाई स्पिरिट) और “शांति की खोज करने, सहयोग मांगने और विकास प्राप्त करने”, अंतरराष्ट्रीय मामलों में सक्रियता से काम करने और शांति व यूरेशिया की स्थिरता की रक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाने के दिशा-निर्देशों पर दृढ़ रहेगा।
विस्तृत एससीओ के लिए क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना प्रधान कार्य है। भारत व पाकिस्तान के जुड़ने से एससीओ सदस्य देशों का संयुक्त भूक्षेत्र अब पूरे यूरेशियन महाद्वीप के तीन-पांचवा हिस्से के लिए जिम्मेदार है और उनकी संयुक्त जनसंख्या पूरी दुनिया की कुल आबादी के आधे हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलावा, एससीओ के अंदरूनी बाजार क्षमता के आगे विस्तार के साथ, वे कुल मिलाकर वैश्विक जीडीपी में 20 फीसदी से भी अधिक का योगदान करते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में, व्यापार सहूलियत पर बातचीत में तेजी लाने के लिए व सेवाओं के व्यापार पर सहयोग रूपरेखा के लिए, एससीओ मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना की संभाव्यता पर अनुसंधान को सक्रियता से बढ़ावा देने और यूरेशिया के लिए एक नया आर्थिक विकास स्तंभ बनाने के लिए एससीओ को अवसरों पकड़ना चाहिए।
बतौर, एससीओ संस्थापक सदस्य और 2018 के छिंगताओ शिखर सम्मेलन का मेजबान, चीन दृढ़ता से विश्वास करता है कि पड़ोसियों के बीच सहभागिता से सहयोग शुरू होना चाहिए। शंघाई स्पिरिट और पड़ोसियों के साथ अपने रिश्तों में “मेल-जोल, ईमानदारी, आपसे फायदे और समग्रता” के सिद्धांतो का पालन करते हुए, चीन अपनी दूरदर्शिता का इस्तेमाल एससीओ के स्वस्थ विकास को बढ़ाने और इलाके में शांतिपूर्ण, खुला व साझा विकास प्राप्त करने के लिए चीनी बुद्धिमत्ता का योगदान के लिए कर रहा है।

लेखक चाइनीज़ एकेडेमी ऑफ सोशल साइंसेज के अंतर्गत इंस्टीट्यूट ऑफ रशियन, ईस्टर्न यूरोपियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज में सहायक अनुसंधानकर्ता हैं तथा नानकाई इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में पोस्टडाक्टरल फेलो हैं।